लोकपर्व जगाते हैं सामाजिक चेतना
खिचड़ी वितरित कर भी लोग पुण्य कमाते हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल के पर्वतीय इलाकों में कोरे चावल व उड़द का दान ब्राह्मणों को देने की परंपरा है। कुछ जगहों पर ऐतिहासिक गिन्दी मेला का आयोजन किया जाता है। जिसमें गेंद के खेल की प्रतियोगिता होती हैं। #ओम प्रकाश उनियाल
लोकपर्वों का स्थानीय आधार पर भारी महत्व होता है। मनाने के तौर-तरीके भी अलग-अलग होते हैं। अपनी संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन करने, संस्कृति की पहचान बनाए रखने, सामाजिक चेतना जगाने, आपसी भाईचारा, प्यार-प्रेम व सौहार्द बनाए रखने में लोकपर्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यही नहीं नयी उमंगों, नया उल्लास और उत्साह का संचरण भी काफी हद तक मानव जीवन में लोकपर्वों द्वारा ही होता है।
लोकपर्व अधिकतर अपने आराध्य देवी-देवों को समर्पित होते हैं। सुख-समृद्धि के लिए देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। ऋतु-परिवर्तन, प्रकृति संरक्षण, फसल कटाई-बुआई करने जैसे अवसरों पर भी लोकपर्व मनाने की परंपरा है। ऐसा ही एक पर्व जो कि जनवरी माह की 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है मकर संक्रांति या देव पर्व नाम से जाना जाता है। यह पर्व देश के कई राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
हालांकि, यह हिन्दुओं का पर्व है लेकिन मनाने का तरीका अलग-अलग है। जैसे कर्नाटक में संक्रांति या सुग्गी हब्बा, उत्तरप्रदेश में किचेरी, उत्तरायण, मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब व हरियाणा में लोहड़ी, उत्तराखंड में मकरैण, घुघुतिया त्यार, उत्तरैण, खिचड़ी संग्रांद आदि नामों से मनाया जाता है। सूर्य देव को समर्पित होता है यह पर्व। सूर्य इस दिन धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन लोग स्नान कर दान, यज्ञ करते हैं एवं सूर्य की पूजा करते हैं।
खिचड़ी वितरित कर भी लोग पुण्य कमाते हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल के पर्वतीय इलाकों में कोरे चावल व उड़द का दान ब्राह्मणों को देने की परंपरा है। कुछ जगहों पर ऐतिहासिक गिन्दी मेला का आयोजन किया जाता है। जिसमें गेंद के खेल की प्रतियोगिता होती हैं। कुमाऊं में घुघुतिया त्यार के नाम से मनाया जाता है यह पर्व। जो कि पक्षियों के संरक्षण का संदेश देता है। लोकपर्वों में कोई न कोई संदेश जरूर छिपा होता है। हमें इन संदेशों का अनुसरण करना चाहिए तथा उनका महत्व समझना चाहिए। इससे लोकपर्वों की महत्ता बनी रहती है।
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