मानवीय मूल्यों का संरक्षण एवं संबर्द्धन है रक्षाबंधन
मानवीय मूल्यों का संरक्षण एवं संबर्द्धन है रक्षाबंधन… कृष्ण व युधिष्ठिर के संवाद के रूप में भविष्य पुराण के अनुसार राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था जिससे इंद्र विजयी हुए थे। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी, रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।
रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों को बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है।
रक्षाबंधन को रक्षाबन्धन, राखी, सलूनो, श्रावणी, चूड़ा राखी का उद्देश्य भ्रातृभावना और सहयोग उत्सव राखी बाँधना, उपहार, भोज अनुष्ठान पूजा, प्रसाद आरम्भ पौराणिक काल से श्रावण पूर्णिमा मानते है।धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए रक्षा किया था। गणपति जी को उनकी बहन ने पूर्णिमा को राखी बांधकर मनोकामना पूर्ण की थी। संस्कृत भाषा में वेदों की रचना प्रारम्भ हुई थी।
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥ अर्थात “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)” नेपाल में ब्राह्मण एवं क्षेत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरू और भागिनेय के हाथ से बाँधा जाता है। नेपाल के दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बँधवाते हैं।भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर 1905 ई. में मातृभूमि वंदना कविता लिख कर त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया।
सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग करके वन्दे मातरम् के आन्दोलन से भड़की एक छोटी सी चिंगारी को शोलों में बदल दिया। 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षा बन्धन की योजना साकार हुई थी। उत्तरांचल में श्रावणी को यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। अमरनाथ की यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। हिमानी शिवलिंग अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है।
मौली, रक्षा बंधन, रखी, रक्षा सूत्र, मणिबंध वैदिक परंपरा है। यज्ञ या किसी भी त्योहार में रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा संकल्प सूत्र व रक्षा-सूत्र के रूप में बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। माता लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए रक्षा बंधन बांधा था।शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है।कच्चे धागे (सूत) से रक्षा सूत्र 5 रंग के धागे में लाल, पीला और हरा, नीला और सफेद सूत पंचदेव देव का प्रतीक है। रक्षा सूत्र को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी होने पर रक्षा सूत्र को खोल दिया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है। हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें। प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान रक्षा सूत्र बांधी जाती है। रक्षा सूत्र को अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए बांधते हैं। देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए बांधते हैं।
रक्षा सूत्र बांधने से आध्यात्मिक, चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक, शुभ कार्य की शुरुआत करते समय, नई वस्तु खरीदने पर हमारे जीवन में शुभ लाभ मिलता है। हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है। इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन रक्षा सूत्र बांधी जाती है।भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है। मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का साक्षात वास रहता है। रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है।
इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता। शास्त्रों के अनुसार रक्षा सूत्र व मौली बांधने से भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। भगवान ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश, लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त और रक्षा निहित होता है। रक्षा सूत्र से सूक्ष्म शरीर स्थिर और बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों के कमर व पैर में कला सूत्र मौली बांधी जाती है। काला धागा से पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते है।प्राचीन काल में कलाई, पैर, कमर और गले में सूत बांधे जाने की परंपरा थी।
शरीर विज्ञान के अनुसार कला सूत से वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग कर शरीर के लिए लाभ करते थे। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा रोगों से बचाव के लिए कला सूत्र बांधना हितकर है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। कमर पर बांधी मौली से सूक्ष्म शरीर में बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है।
बच्चों को अक्सर कमर में कला सूत बांधी जाती है।,मौली बांधने से उसके पवित्र और मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। रक्षा सूत्र बांधने से मानसिक, शारिरिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा का संचार और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। श्रावण की पूर्णिमा को ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक सूत्र बांधने की परंपरा को रक्षासूत्र कहा जाता था। भगवान विष्णु के वामनावतार ने राजा बलि के रक्षासूत्र बांधा था और उसके बाद उन्हें पाताल जाने का आदेश दिया था।
कृष्ण व युधिष्ठिर के संवाद के रूप में भविष्य पुराण के अनुसार राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था जिससे इंद्र विजयी हुए थे। द्रोपदी द्वारा श्री कृष्ण को रक्षाबंधन कर अपनी सुरक्षा प्राप्त की थी। महारानी कर्णावती द्वारा मुगल बादशाह हुमायु को रक्षा सूत्र रखी भेज कर सुरक्षित हुई थी। रक्षा बंधन के दिन वेदों पुरणों, स्मृतियों, संहिताओं का संस्कृत में ल्क्षोंइखी गयी थी। रक्षाबंधन को संस्कृत दिवस कहा गया है। पर्यावरण रक्षा के लिए वृक्षों को रक्षासूत्र तथा परिवार की रक्षा के लिए माँ को रक्षासूत्र बाँधने के दृष्टांत हैं। जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।