मां से बड़ा कोई रब नहीं, वात्सल्य की प्रतिमूर्ति होती है मां
मां से बड़ा कोई रब नहीं, वात्सल्य की प्रतिमूर्ति होती है मां… वह तो स्वयं शक्ति स्वरूपा दुर्गा मां है। सरस्वती रूपा हैं। अन्नपूर्णा है। घर की लक्ष्मी और एक कुशल प्रशासक, गृहणी है। मां तो मां ही है। मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहना चाहिए। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कहते हैं कि मां से छोटा कोई शब्द नहीं और मां से बड़ा कोई रब नहीं हैं। मां शब्द ही अपने आप में बहुत बड़ा है जिसकों शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मां हैं तो हम हैं। मां हैं तो लाड़ प्यार हैं। मां है तो ननिहाल है अन्यथा मां बिना यह जीवन व्यर्थ है।
वह न केवल हमारी पालनहार ही हैं अपितु सही मायने में एक गुरू भी हैं। मां इस धरती पर परमात्मा का ही प्रतिनिधित्व कर रही है। परमात्मा हर घर में स्वयं व्यक्ति के रूप में उपस्थित नहीं रह सकते, इसलिए उन्होंने मां को भेजा है और वह हमारी देखभाल करती हैं। मां का मान सम्मान ईश्वर का मान सम्मान ही हैं। अतः मां को कभी भी किसी भी प्रकार की पीड़ा व दुःख न पहुंचाएं। उसे कभी भी वृध्दाश्रम न भेजे।
मां जब अपने हाथों से बच्चों को भोजन कराती हैं तब जहां एक ओर बच्चों का पेट भर जाता है, वहीं दूसरी ओर मां का जी भर जाता है। चूंकि मां तो वात्सल्य की प्रतिमूर्ति होती हैं। वह बड़ी ही अच्छी होती है। भोली और प्यारी-प्यारी है। उसकी तुलना हम किसी से भी नही कर सकते।
वह तो स्वयं शक्ति स्वरूपा दुर्गा मां है। सरस्वती रूपा हैं। अन्नपूर्णा है। घर की लक्ष्मी और एक कुशल प्रशासक, गृहणी है। मां तो मां ही है। मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहना चाहिए। हम जब भी संकट में होते है तो सबसे पहले मां ही याद आती है और मुख से यही निकलता है कि हे मां। तभी तो कहा जाता है कि माता-पिता के चरणों में ही चारों धाम हैं। अतः सुबह-शाम उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
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