सुख-दु:ख

सुख-दु:ख, जीवन ऐसा जीओ जिसे किसी की नजर न लगे और दूसरे भी आपके जीवन से कुछ नया सीखे। भगवान के पीतल की मूर्तियो व बर्तनों को जैसे पीताम्बरी से… पढ़ें जोधपुर राजस्थान से सुनील कुमार माथुर के विचार…
भगवान कभी भी किसी को दुख नहीं देते हैं अगर ऐसा होता तो हम कभी भी उन्हें याद नहीं करते। दुख – सुख के कारण भगवान नहीं अपितु हमारे अपने कर्म हैं। अच्छे कर्म करों तो सुख ही सुख है और बुरे कर्म करों तो दुख ही दुख है। अतः भगवान को दोष देना बंद कीजिये और हमेंशा अच्छे कर्म कीजिये।
भजन कीर्तन, पूजा पाठ, कथा करने के बाद ईश्वर से इतनी विनती जरूर करे कि प्रभु मैं ज्ञानी नही अज्ञानी हूं। इसलिए पूजा पाठ में कोई गलती हुई हो तो क्षमा करना। प्रभु आपकी भक्ति से अवश्य प्रसन्न होगे और आपकी पूजा पाठ को स्वीकार कर लेगे। असली जीवन तो गांवों में बसता है लेकिन शहरों में आकर गांवों के उस जीवन को बरकरार रखना बहुत मायने रखता है। आपके जीवन की असली पहचान आपके व्यक्तित्व से ही झलकती हैं। अतः अपने व्यक्तित्व को हर दिन निखारते रहिए।
जीवन ऐसा जीओ जिसे किसी की नजर न लगे और दूसरे भी आपके जीवन से कुछ नया सीखे। भगवान के पीतल की मूर्तियो व बर्तनों को जैसे पीताम्बरी से चमकाया जाता है वैसे ही अपने जीवन को आदर्श संस्कारों को अपना कर संवारे। जब तक हम संस्कारवान है तभी तक समाज में हमारा अस्तित्व है अन्यथा जीवन बेकार है शून्य हैं। निरस है।
बेजान हैं जीवन को एक सुंदर बगिया बनायें, जहां खुशबू ही खुशबू हो। आनंद ही आनंद हो और प्रेम व करूणा का सागर हिलोरे लेता हो। जीवन को खुशहाल बनाने वाले हम ही है और कांटे बोने वाले भी हम ही है। अतः यह हमें ही तय करना हैं कि हमें कैसा जीवन जीना है। अतः जीवन जीना ही है तो फिर आनंदमय जीवन जीओं।
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