अहसान और जिम्मेदारी

अहसान और जिम्मेदारी… ठीक उसी प्रकार माता-पिता का मान सम्मान करना, उनकी आज्ञा का पालन करना, उनकी देखरेख करना बच्चों का कर्तव्य है। याद रखिए… पढ़ें जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर के विचार…
अहसान और जिम्मेदारी दो अलग अलग शब्द हैं। जिम्मेदारी हमें अपने कर्तव्य का बोध कराता है जबकि अहसान हमें किसी के दबे तले का अहसास कराता है यानि हम किसी के बोझ तले कार्य कर रहे हैं। अगर हम उसके कहे अनुसार कार्य न करे तो वह हमें अहसास कराता है कि अगर मैं नहीं होता तो तुम्हे कौन बचाता, तुम्हारा काम कौन करता। वगैरह वगैरह।
तभी तो कहा जाता हैं कि कोई हमें बार बार अहसान की याद दिलाये इससे तो बेहतर है कि दुख उठा लेना चाहिए। दुख कभी भी स्थाई नहीं होता है लेकिन कम से कम बार बार यह तो न सुनना पडे कि अगर मैं न होता तो।
जबकि जिम्मेदारी हमें अपने कर्तव्य का बोध कराती है। जिम्मेदारी फर्ज है हमारा। हम अपने फर्ज से भाग नही सकते। जिम्मेदारी से मुख मोड नहीं सकते पीछे हट नहीं सकते। यानि जिम्मेदारियों का कभी अंत होता ही नहीं हैं। बच्चों का लालन – पालन करना, शिक्षा दिलाना, शादी – ब्याह करना माता – पिता की जिम्मेदारी है न कि अहसान।
ठीक उसी प्रकार माता – पिता का मान सम्मान करना, उनकी आज्ञा का पालन करना, उनकी देखरेख करना बच्चों का कर्तव्य है। याद रखिए जहां अधिकारो कि बात आती है वही कर्तव्यों की बात अवश्य होती है चूंकि अधिकार है वही कर्तव्य भी हैं। कोई हमारा काम करके हम पर बार बार अहसान जताये या महसूस कराये ऐसे लोगों से भविष्य में सावधान रहना ही बेहतर है।
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