आरक्षण में भी सम्पूर्ण योग्यता का ख्याल रखा जाना चाहिए

ऊंची जाति के लोग 25 प्रतिशत से भी कम हैं। यह संभव है कि बिहार सरकार आगामी दिनों में आरक्षण के दायरे में और वृद्धि करे। ऊंची जाति के लोग और भी कई तरह के उत्पीड़न के शिकार होते जा रहे हैं। रणवीर सेना के दमन के बाद नक्सली संगठन पर सरकार पूरी तरह से लगाम नहीं कस पाई है । #राजीव कुमार झा
समाजशास्त्री ऐसा मानते हैं कि शिक्षा संस्कृति से दूर दलित पिछड़े लोगों के राजनीति और सरकार गठन में प्रभावी होने से देश और राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है क्योंकि उनके पास सामाजिक राजनीतिक चिंतन से जुड़ी नैतिकता का कोई बोध नहीं है। वे प्रतिक्रियावादी हैं। योग्यता आखिर परंपरागत पेशों से जुड़े कार्यों में भी हुनर के रूप में अगर विभिन्न जातियों में अनिवार्य माना जाती है तो बिहार की सरकारी नौकरियों में योग्यता को नजरअंदाज करके नौकरी में आरक्षण के फार्मूले को क्यों व्यापक बनाया जा रहा है!
शायद इसलिए कि दलित पिछड़े आदिवासी अब बहुसंख्यक बनकर अपनी सरकार बनाकर संवैधानिक प्रावधानों की भी उपेक्षा करके अपने हितों के अनुरूप विधान सभा में कानून पारित कराने में जुटे हैं। आरक्षण से बिहार के कॉलेजों में पढ़े इंजीनियर और डॉक्टर बने लड़के थर्मामीटर देखकर रोगी का बुखार और आले से उत्तकों की दशा के बारे में कुछ नहीं बता पा रहे हैं। यहां डिप्टी कलक्टर और एसडीएम अपने कलक्टर से अंग्रेजी में बातें नहीं कर पा रहे हैं और इंजीनियर ठेकेदारों से पूछकर निर्माण कार्य कराते हैं। शिक्षक प्रोफेसर ठीक से पढ़ा नहीं पाते हैं।
बिहार में आरक्षण और सरकार के खजाने से बंटने वाले वेतन का बंटवारा बिहार में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के वर्तमान फार्मूले से वेतन के रूप में राज्य में यहां के निवासियों में बांटी जाने वाली राशि को उच्च जाति के लोगों से छीनकर उसे निम्न जाति के लोगों में बांटना और उनके समर्थन से आगामी चुनावों में सरकार का गठन करना यहां की वर्तमान सरकार का लक्ष्य है। सरकार ने जेनरल कैटेगरी में 25 प्रतिशत सीटों को सबके लिए खुला रखा है।
ऊंची जाति के लोग 25 प्रतिशत से भी कम हैं। यह संभव है कि बिहार सरकार आगामी दिनों में आरक्षण के दायरे में और वृद्धि करे। ऊंची जाति के लोग और भी कई तरह के उत्पीड़न के शिकार होते जा रहे हैं। रणवीर सेना के दमन के बाद नक्सली संगठन पर सरकार पूरी तरह से लगाम नहीं कस पाई है। जीतनराम मांझी नक्सली संगठनों को खुलेआम गरीब गुरबों का संगठन बताया करते थे। यह अपराधियों के गिरोह हैं। आरक्षण के वर्तमान फार्मूले से बिहार की शिक्षा यहां के प्रशासन और चिकित्सालयों में अज्ञानी सरकारी कर्मियों की तादाद में बढ़ावा हो रहा है।
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