रुक्मिणी मंदिर द्वारिकापुरी का परिभ्रमण
रुक्मिणी मंदिर द्वारिकापुरी का परिभ्रमण… रुक्मणी मंदिर में पीने के पानी का दान सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दान है। मंदिर में भक्त 1001, 1100 लीटर अथवा अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार पानी का दान करते हैं। मंदिर के चारों ओर पेय जल की भारी जल की महत्ता को प्रति प्रेरित करती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा बेट द्वारका जाते समय रुक्मिणी मंदिर द्वारका से निकलते के रास्ते में है। #सात्येन्द्र कुमार पाठक
शास्त्रों के अनुसार द्वारिका जिले के द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी श्री रुक्मणी को समर्पित प्रथम रुक्मिणी मंदिर के गर्भगृह में माता रुक्मिणी की चतुर्भुजी विग्रह रूप में शंख चक्र गदा, एवं पद्म धारण किए हुए माता लक्ष्मी के अवतार रुक्मिणी की मूर्ति है।रुक्मिणी मंदिर के शिखर पर लहराता विशाल ध्वज को दूर से दिखाई देती है। शिखर ध्वजा प्रत्येक दिन तिथि एवं त्यौहारों के अनुरूप बदले जाने हैं। द्रुक्मिणी मंदिर भी बलुआ पत्थर से निर्मित है। द्वारका धाम की यात्रा करने वाले भक्तों के लिए रुक्मिणी मंदिर के दर्शन के बिना द्वारिका यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। मंदिर के गर्भग्रह में दर्शन से पूर्व रुक्मिणी मंदिर के महंतों के द्वारा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं एवं मान्यताओं का विस्तार से वर्णन किया जाता है। साथ-साथ दान से जुड़ी अवधारणाओं के बारे में बताया जाता है। मंदिर का सबसे लोकप्रिय मनाया जाने वाला त्यौहार निर्जला एकादशी रुक्मिणी हरण एकादशी के नाम से जाना जाता है।
रुक्मणी मंदिर में पीने के पानी का दान सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दान है। मंदिर में भक्त 1001, 1100 लीटर अथवा अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार पानी का दान करते हैं। मंदिर के चारों ओर पेय जल की भारी जल की महत्ता को प्रति प्रेरित करती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा बेट द्वारका जाते समय रुक्मिणी मंदिर द्वारका से निकलते के रास्ते में है। मंदिर द्वारका बाहर से 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। रुक्मिणी मंदिर की दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की नक्काशी है। रुक्मिणी मंदिर का निर्माण बलुआही पत्थर से 12 वीं शताब्दी में किया गया है। द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण की प्रथम धर्मपत्नी तथा पटरानी रुक्मिणी को माता लक्ष्मी का अवतार भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने श्रीकृष्ण से प्रेम विवाह किया था। महाभारत,भागवत पुराण,पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की पत्नी, लक्ष्मी अवतार और द्वारिका की पटरानी थी।
द्वारका के राजकुमार कृष्ण ने उनके अनुरोध पर एक अवांछित विवाह को रोकने के लिए उनका हरण किया एवं अपने साथ ले गए तदन्तर रुक्मिणी को शिशुपाल से बचाया। रुक्मिणी को भाग्य की देवी लक्ष्मीअवतार कहा जाता है। जन्म पौराणिक आख्यानों के अनुसार, विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री राजकुमारी रुक्मिणी का जन्म वैशाख शुक्ल एकादशी द्वापरयुग को हुआ था। भागवत पुराण १०.५२.१६) में उल्लेख है कि द्वारका के नागरिक द्वारिकाधीश कृष्ण के साथ भाग्य देवी रुक्मिणी के साथ देखने के व्यकुल थे। (श्रीमद्भागवत १०.५४.६० एवं। (महाभारत आदिपर्व ६७.६५६ के अनुसार रुक्मिणी मूलप्रकृति) कृष्ण (कृष्णमिका) की आदशक्ति, और दिव्य विश्व (जगत्कारी), द्वारका/वैकुंठ की रानी/माता हैं।विदर्भ राजा भीष्मक मगध के राजा जरासंध के जागीरदार थे। रुक्मिणी को रुखुमई को महाराष्ट्र के पंढरपुर में विठोबा कृष्ण की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
मान १४८० में रुक्मिणी देवी के सेवक संदेशवाहक, वाडिरजतीर्थ (१४८०-१६००) के रूप मे प्रकट होने के कारण माधवाचार्य परंपरा रुक्मिणी आराध्या थी। माधवाचार्य ने १२४० श्लोकों में रुक्मिणी और कृष्ण की महिका वर्णन करते हुए रचना की थी। महाकाव्य महाभारत और शास्त्रों के अनुसार, साक्षात महालक्ष्मी जी ने रूक्मणीजी के रूप में विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक की रुक्मिणी अवतार लिया था।भाई रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मनेत्र थे। भागवत पुराण में उल्लेख है कि अनंत काल तक के समकक्ष अच्युत दिव्य प्रेम के पश्चात रुक्मिणी और अच्युतनंद शरीर कृष्ण के दिव्य पुत्रों में प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चरुगुप्त, भद्रचारु, चारुचंद्र, विचारु और चारु थे।
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द्वारिकापुरी का परिभ्रमण 04 सितंबर 2024 को द्वारिकापुरी में अवस्थित रुक्मिणी मंदिर एवं रुक्मिणी कुंड का भ्रमण साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा गोमती नदी एवं अरब सागर संगम तट पर अवस्थित द्वारिका भ्रमण के बाद द्वारिकापूरी क्षेत्र स्थित रुकमणी मंदिर एवं रुक्मिणी सरोवर, कुंड आदि स्थानों का भ्रमण किया गया। भ्रमण के दौरान साथ में स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा व व लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव एवं साहित्यकार रुक्मिणी मंदिर के गर्भगृह में माता रुक्मिणी जीने भूदेवी का दर्शन किया एवं साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा अपने पूर्वजों को जल अर्पण तथा एक सौ रु. मंदिर को समर्पण किया गया। मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता रुक्मिणी दर्शन के पूर्व रुक्मिणी मंदिर, रुक्मिणी कुंड एवं जल दान का महत्व के संबंध में जानकारी मंदिर के बाद पांडा ने मंदिर के गर्भगृह जाने की अनुमति दी गयी थी।