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साफा बांधना भी एक कला है…

प्रशिक्षक मनोज बोहरा का कहना है कि साफा बांधने में किसी को भी परेशानी नहीं हो, बस इसी भावना को ध्यान में रखते हुए यह प्रशिक्षण शिविर हर वर्ष ग्रीष्मकालीन अवकाश में लगाया जाता है ताकि हर व्यक्ति साफा बांधना सीख लें। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

साफा हमारी आन बान और शान का प्रतीक है। साफा बांधना कोई आसान काम नहीं है अपितु यह भी एक कला हैं। पहले केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही पुरुष वर्ग साफा बांधा करते थे और देश के विभिन्न भागों में अलग अलग तरीके से और अलग-अलग रंग के साफे पहने जाते हैं। यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का भी एक अभिन्न अंग हैं जिसकी रक्षा करना हर भारतीय का धर्म हैं।

आजकल लड़कियों ने भी शादी ब्याह व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में साफा पहनना आरम्भ कर दिया है। उनका मानना है कि आज के समय में ब्युटी पार्लर जाकर तैयार होने में काफी समय और धन की बर्बादी होती है। लेकिन साफा पहनने से सारे झंझटों से तत्काल मुक्ति मिल जाती है। वैसे भी महिलाओं और लड़कियों पर यह ताने कसे जाते हैं कि वह तैयार होने में काफी देर लगाती हैं, लेकिन साफा बांधते ही वह तैयार हैं। साफा सलवार कुर्ता हो या साडी सब पर जचता है। वही आत्म विश्वास भी जागृत होता हैं कि गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब गर्मियों की छुट्टियों में लगने वाले ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविरों में साफा बांधना भी सिखाया जा रहा हैं। सूर्यनगरी जोधपुर के फोटोग्राफर, पत्रकार व प्रशिक्षक मनोज बोहरा व उनकी टीम पिछले करीबन 13 – 14 वर्षों से ग्रीष्मकालीन अवकाश में युवाओं को साफा बांधने का भुत नाथ में निशुल्क प्रशिक्षण देकर समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं जो वंदनीय और सराहनीय है।

प्रशिक्षक मनोज बोहरा का कहना है कि साफा बांधने में किसी को भी परेशानी नहीं हो, बस इसी भावना को ध्यान में रखते हुए यह प्रशिक्षण शिविर हर वर्ष ग्रीष्मकालीन अवकाश में लगाया जाता है ताकि हर व्यक्ति साफा बांधना सीख लें। वैसे भी साफा भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ही एक हिस्सा है। उन्होंने बताया कि साफा बांधना भी एक कला जो हर किसी को आनी चाहिए।

बोहरा ने बताया कि वे अपनी टीम के साथ जोधपुरी पेच व गोल साफा बांधना सीखा रहे हैं और अब तक पिछले 13 – 14 वर्षों में सैकडों लोग साफा बांधने का प्रशिक्षण लेकर लाभान्वित हो चुके है। वही लड़कियों का कहना है कि आज की नारी जब हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है तो फिर शादी ब्याह में साफा पहनने में कहा आपत्ति है।


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