मौन क्यों…?
प्रेम बजाज
आज जिस समाज में हम जी रहे हैं , जिंदा होते हुए भी मृत हैं , सब कुछ देखते हुए हम मौन है । आज सरेआम राह चलती मासूम बच्चियों से छेड़छाड़ , बलात्कर , चेहरे पर तेज़ाब डालना , कहीं अजन्मी बेटी का गला घोंटना तो कहीं किसी की बेटी को दहेज ना लाने पर ज़िंदा जलाना , सब देखते-जानते हुए भी हम सब मौन है , मज़दूर तबके का शोषण , छोटे आफिसर से लेकर बड़े मंत्री तक सभी टेबल के नीचे से मौन तोड़ते अगर ऐसा नहीं होता तो मौन हो जाते हैं ।
हमारा मौन अपराधिक मामलों को और बढ़ावा दे रहा है , देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है , अपराधी को सज़ा समय से मिलती, सालों- साल मुकदमे ही चलते रहते हैं।
हम फिर भी मौन है क्यों ?
शिक्षा क्षेत्र देखें तो शिक्षक जो इन्सान की बचपन से ही नींव मज़बूत करता है , वहां भी फीस के नाम पर मनमानी मोटी रकम ऐंठी जाती है , उसके बाद कहीं ट्यूशन फीस तो कहीं एक्टिविटी के नाम पर फीस , ऐसे खर्चे वहन ना कर सकने से परिवार संकुचित हो रहे हैं। डाक्टरी पेशे में देखा जाए तो , इलाज के नाम पर व्यापार है , मुंह मांगी रकम पहले लेकर ही इलाज शुरू करते हैं ।
जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक द्वारा कोरोना की बात पर मौन रहना , और जब तक हद बढ़ा नहीं तब तक मौन रहे , अगर ये मौन टूटा होता तो शायद आज ये हालात ना होते । जगह-जगह हिन्दू- मुस्लिम को आपस में लड़ा कर हर कोई अपना उल्लू सीधा करता , लेकिन मौन रह कर , ऐसा मौन एक दिन देश को विनाश की ओर ले जाएगा ।
अगर कोई दिल से सोचे ये सब मेरे साथ हो तो मैं कैसे सहन करूंगा , हम ये तो सोचते हैं कि जो हुआ , लेकिन ये नहीं सोच पाते कि ये सब मेरे साथ घटित हो तो कैसा लगेगा ।
कुछ मौन ऐसे होते हैं जो चुभ जाते हैं दिल में नश्तर जैसे , मेरे एक दोस्त का हंसता – खेलता परिवार बहुत अच्छा लगता है , परिवार के प्यार की बातें जब वो बताएं तो सुन कर अच्छा लगता है , लेकिन उसके घर गए तो क्या देखा एक बुजुर्ग दूर कम रोशनी वाले कमरे में , जहां गंदगी भी है , जाने को जी ना चाहे , आवाज़ लगाता है कि कोई पानी देदो कब से मांग रहा हूं , बहुत प्यास लगी है तो जानकर हैरानी होती है कि वो दोस्त के पिता है , बच्चों पर उनकी बिमारी का असर ना इसलिए अलग कमरा बना दिया उनको , और घूरती आंखों से उन्हें पानी दिया जैसे कह रहा हो कि इस समय क्यों आए बाहर निकल कर ?
क्यों ऐसा व्यवहार उस जन्मदाता के साथ , क्या ऐसे मौन को कोई तोड़ेगा? आज का समाज गुंगा होने के साथ-साथ बहरा और अंधा भी बन गया है , बापु के तीन बंदरों की तरह । बापु के बन्दर ये नहीं कहते कि कहीं ज़ुल्म हो रहा है तो मत देखो , मत उसके खिलाफ कुछ कहो , या मत किसी अबला की चित्कार सुनो ।
बापु के तीन बन्दर ये कहते हैं कि अन्याय के खिलाफ बोलो मगर अन्याय करने के लिए मौन रहो , किसी अबला की चित्कार सुनो कर कान मत बंद करो अपितु किसी अच्छे इन्सान की बुराई सुनने के लिए कान बंद करो , किसी अबला को तकलीफ़ सहते देख आंखें मत बंद करो अपितु हर बहु- बेटी की इज्जत कर उसे बेपर्दा ना करो ना देखो ।
आओ कोई तो जागो , कोई तो ये मौन तोड़ो , इस मौन के खिलाफ कोई ऐसी मुहिम चलाओ कि ये मौन टूटे।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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