किसका श्रृंगार करूं…

राजेश ध्यानी “सागर”
किसका श्रृंगार करू
सुबह का या रात का
किसका इन्तजार करू
वफ़ा या बेफ़वाई का
वफा तो खूबसूरत
बेवफाई का पता नहीं
कहते हैं लोग
ये नाशूर
अक्सर दिखती नहीं
निशां छोड जातीहै
दिल तो वफ़ा ले गया
बेवफ़ा
थोड़ा सहन करना
मेरे दिल के
निशां पर
थोड़ी रहम करना
किसका श्रृंगार करू
सुबह का या रात का
किसका इन्तजार करू
वफ़ा या बेफ़वाई का
वफा तो खूबसूरत
बेवफाई का पता नहीं
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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