संस्कारों में कहां रह गई कमी ?

सुनील कुमार माथुर

रिश्वत लेते जब बेटा पकडा गया तब
मां की आत्मा चित्कार उठी और वह बोली
बच्चे को आदर्श संस्कार देने में कहां रह गई कमी ?

जो ऐसी औलाद मिली , नौ माह पेट में पाला
नाना प्रकार के कष्ट सहे , बच्चे को चलना – फिरना
बोलना – खेलना , पढना – लिखना सीखाया
फिर भला आदर्श संस्कार देने में कहां रह गई कमी ?

खुद भूखी रही लेकिन बच्चे को अच्छा खिलाया
खुदने फटे – पुराने कपडे पहनें लेकिन
बच्चे को अच्छे कपडे पहनाये
खुद पैदल चली लेकिन बेटे को गाडी दिलाई
खुद कंगाली में रहीं लेकिन बेटे को सब सुख दिये

आज वही बेटा रिश्वत लेते पकडा गया
भला कहां आदर्श संस्कार देने में कमी रह गई ?
घूसखोर औलाद को जन्म देने से पहलें
मैं मर क्यों नहीं गई ?
हे प्रभु ! क्या अब यही दिन देखने बाकी रह गये थे ?
घूसखोर औलाद को पालकर
हे प्रभु ! मैने यह क्या कर दिया ?

हें प्रभु ! शायद आदर्श संस्कार देने में
मुझ से ही कहीं कोई भूल हो गई हैं इसलिए
हे प्रभु ! मुझे क्षमा करना लेकिन
अब आप इस रिश्वतखोर को सजा देने में
कहीं कोई भूल मत करना अन्यथा
यह दुष्ट न जानें कितनों को बर्बाद कर देगा


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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