तनाव मुक्त रहिए और मस्त रहिए

सुनील कुमार माथुर
आज हर इंसान तनाव के माहौल में जीवन व्यतीत कर रहा हैं आप किसी के भी पास चले जाईये । वे अपनी पीडा व दुखडा ले बैठते हैं । तब हम मन ही मन कहते हैं कि जब देखों तब रोता ही रहता हैं । तनाव यानि टेंशन से मतलब हैं कि ऐसे लोगों को न तो भगवान पर विश्वास होता हैं और न ही किसी अन्य व्यक्ति पर विश्वास होता हैं नतीजन वह टेंशन में ही रहता हैं और टेंशन हमारा सबसे बडा शत्रु हैं ।
विश्वास और टेंशन कभी भी एक साथ नहीं रह सकते अतः जीवन में दूसरों पर और भगवान पर विश्वास करना सीखें । जीवन जीओं शान से और पानी पीओ छान के । कहने का तात्पर्य यह है कि विश्वास करना सीखें और तनाव मुक्त जीवन जीना सीखें । अपने आप पर विश्वास होना चाहिए चूंकि हमारा आत्मविश्वास ही हमें सफलता का मार्ग दिखाता हैं ।
उस परमपिता परमेश्वर पर विश्वास कीजिए आपके सभी कार्य और मनोरथ पूर्ण होगे । आप अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीन दुखियों की सेवा कीजिए । सभी के साथ समान व्यवहार करे व प्रेम से बोलें । अपने से छोटे व बडे सभी के साथ उठे – बैठे और उन्हें मान – सम्मान दीजिए । हमें तो बस अपने नेक कर्म करते रहना चाहिए । कोई आपके पास किसी तरह की मदद के लिए आया हैं तो उसकी पूरी बात सुनें । उसकी मदद कर सकतें है तो अवश्य कीजिए और नहीं कर सकते हैं तो स्पष्ट रूप से मना करके सोरी बोल दीजिए । लेकिन देखेगे , कोशिश करूंगा जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर उसे झूठा भरोसा न दिलाये और न ही भरोसे में रखें ताकि वह कोई दूसरा रास्ता खोज सकें ।
अपना कार्य पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ सुचारू रूप से करें और किसी के भी साथ छल कपट न करे और न ही बेईमानी करें । हमेशा सच्चे लोगों व साधु संतों व महापुरुषों का संग करें ताकि जीवन में अच्छी बातें सीखने को मिले । नया ज्ञान व अनुभव मिले । अपनी ड्यूटी के दौरान एक टी टीई राजकुमार जोशी को एक कीमती मोबाइल ट्रेन में मिला तब उस टी टी ई ने वह मोबाइल उसके असली मालिक तक पहुंचा कर न केवल अपनी ईमानदारी का ही परिचय अपितु साथ ही साथ यह भी साबित कर दिया कि जो वस्तु अपनी नहीं है वह हमारे लिए मिट्टी के समान हैं । टी टी ई की ईमानदारी आदर्श संस्कारों का ही तो परिणाम है । उसकी ईमानदारी से हमे प्रेरणा लेकर उसे जीवन में आत्मसात करना चाहिए चूंकि ईमानदारी ही हमारे जीवन की श्रेष्ठ पूंजी है जिसे बनाये रखना है ।
प्रभु की भक्ति में इतनी शक्ति होती हैं कि वह हमें कथा स्थल भजन-कीर्तन स्थल तक स्वतः ही खींच कर ले जाती हैं तब आप अंदाजा लगाईये कि प्रभु स्वंय हमारे समक्ष उपस्थित हो जाये तो हमारी क्या स्थिति होगी । कैवल बाहरी शान – शौकत , गाडी , बंगले , धन – दौलत से व्यक्ति महान नहीं बनता है अपितु महान बनने के लिए आदर्श संस्कारों का होना नितान्त आवश्यक है ।
केवल गप्प शप्प में अपना समय बर्बाद न करें अपितु धर्म ग्रंथ पढें , भजन कीर्तन व सत्संग करे , कथा सुने और ज्ञान की बातों को सुनकर उन्हें जीवन में अंगीकार करके जीवन को पावन कर लीजिए । पुण्य व नेक कार्य करने में कोई बुराई नहीं है । नदी अपना पानी स्वंय नहीं पीती हैं और पेड अपने फल स्वंय नहीं खाते हैं और दूसरे लोग ही उनका उपयोग करते हैं तो फिर भला हम इंसान होकर किसी जरूरतमंदकी मदद करने से भला क्यों कतराते हैं । विश्वास करना सीखें और तनाव मुक्त जीवन व्यतीत करें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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