साधु-संत या शैतान क्या कहें इन्हें
प्रेम बजाज
लघुसिद्धांत शकोमुदी में कहा है साध्नोती परकार्यमिती साधु (अर्थात जो दूसरों का कार्य करें वह साधु है) जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर का त्याग करने वाले को साधु कहा जाता है।
प्राचीन ग्रंथों, पुराणों में साधु-संतो एवं ऋषि-मुनियों का वर्णन एवं विशेष महत्व बताया है। क्योंकि ऋषि-मुनि समाज कल्याण के कार्य करते थे और लोगों को समस्याओं से मुक्ति दिलाते थे। आज भी पहाड़ों, कंदराओं में अनेकों ऋषि- मुनि अथवा साधु-संत देखने को मिल जाएंगे।
लेकिन ऋषि- मुनि, साधु और संत में अंतर होता है, अधिकतर लोग इन सबको एक ही समझते हैं, और ढोंगी साधुओं को ऋषि- महर्षि की उपमा देकर उन्हें पूजा जाता है। जिसका ऐसे साधु गलत उपयोग करते हैं।
वैदिक ऋचाओं के रचयिता को ऋषि की संज्ञा दी गई, ऋषि को सैंकड़ो सालों तक तप या ध्यान के कारण उच्च स्तर का माना जाता है ऋषि अपनी योग के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त करते हैं और अपने शिष्यों को आत्मज्ञान को प्राप्ति करवाते हैं। पुराणों में सप्तर्षि का उल्लेख मिलता है। तप और ज्ञान की उच्चतम स्थिति प्राप्त करने वाले को महर्षि कहा जाता है। महर्षि मोह-माया से विरक्त होते हैं और परमात्मा को समर्पित होते हैं।
हम सब में तीन चक्षु होते हैं, ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु
जिसका ज्ञान चक्षु जाग्रत होता है उसे ऋषि कहा जाता है, जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है उसे महर्षि कहा जाता है, जिसका परम चक्षु जाग्रत होता है उसे ब्रह्मर्षि कहा जाता है। अन्तिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे जिन्होंने मुल-मंत्रो को समझा और उनकी व्याख्या की, उनके बाद कोई भी महर्षि नहीं हुआ।
संत शब्द संस्कृत के शांत शब्द से बिगड़ कर और संतुलन से बना है, संत उसे कहते हैं जो सत्य का आचरण करता है और आत्मज्ञानी होता है। जैसे कबीरदास, तुलसीदास इत्यादि। ईश्वर के भक्त और धार्मिक पुरुष को भी संत कहते हैं। साधु शब्द का प्रयोग अच्छे और बुरे इन्सान के भेद दर्शाने में भी किया जाता है, अर्थात सीधा, सच्चा और साकारात्मक सोच वाले को साधु की संज्ञा दी जाती है।
कोई व्यक्ति गण साधना, तपस्या द्वारा वेदोक्त ज्ञान को जगत में बांटते हुए वैराग्य का जीवन जीते हुए, ईश्वर भक्ति में लीन हो जाता है, उसे साधु कहा जाता है। लेकिन आज के युग में गेरूआ वस्त्र धारक को साधु कहा गया, जिसमें अधिकतर वेदों-शास्त्रों के नाम से भी परिचित नहीं, अल्पज्ञान से पोषित भोली-भाली जनता को भरमाते हैं, जिसमें अधिकतर स्त्रियां भ्रमित होती है, क्योंकि स्त्री कोमल ह्रदय साथ शीघ्र विश्वास करने वाली होती हैं।
अधिकतर कम पढ़ी, भोली स्त्रियों का साधु नामक कुछ शैतान जो कामुक एवं लोभी वृति के होते हैं, उनका फायदा उठाकर उन्हें अपने मायाजाल में फंसा लेते हैं। कोई स्त्री घर से दुःखी, पतिसुख से असंतुष्ट, रिश्ते-नाते से त्रस्त, अल्पबुद्धि, ऐसे ढोंगी साधुओं पर अतिशीघ्र विश्वास कर लेती है, यही विश्वास अंधविश्वास बन जाता है।
जब कोई स्त्री अपने दुखड़ों का रोना रोने लगती है तो सहानुभूति दर्शाते हुए ऐसे साधु उन्हें अपने चमत्कारों से उनकी स्थिति बेहतर बनाने का विश्वास दिलाते हुए उनके भोलेपन का फायदा उठाते हुए अपने मायाजाल में उलझा लेते हैं।
एवं कुछ आर्थिक मंदी से उलझती स्त्रियों की मदद करके उन पर एहसान करके उसका बदला उनके तन से लेते हैं, कुछ अमीर घरों की कम-अक्ल औरतों को तन और धन दोनों तरह से लूटते हैं। और कोमल ह्रदय स्त्री कोई लुटती रहती है, कभी शारीरिक सुख की लालसा या कभी बदनामी के भय से इनके चंगुल में फंस जाती है। तब वो ना तो किसी से कह सकती है ना सही सकती है, और ये शैतान बनाम साधु उसका भरपूर फायदा उठाते हैं।
इसमें दोषी साधु तो है ही, लेकिन वो स्त्री जो केवल क्षणिक सुख के लिए साधु को खुद को समर्पित करती है। लेकिन ऐसे साधुओं का कोई पर्दाफाश नहीं करता, ना ही ऐसी स्त्रियों को कोई सही राह दिखाता है, अर्थात समाज का अपने कर्तव्य के प्रति विमुख होना भी ऐसी बातों को बढ़ावा देना है.
समाज को भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए ऐसी स्त्रियों को ढोंगी बाबाओं का पर्दाफाश करके उनके चंगुल से बचाना चाहिए।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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