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फर्जीवाड़ा: आगरा, मेरठ, उन्नाव और नैनीताल तक फैला है सौदों का जाल

कानपुर | कानपुर में नजूल की भूमि पर हुए कब्जे और फर्जी बिक्री का मामला अब प्रदेश के चार और शहरों तक पहुंच गया है। कर्नलगंज पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि यह संगठित घोटाला साल 2007 से चल रहा है, जिसमें आरोपियों ने फर्जी दस्तावेजों और पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिये सरकारी जमीनें निजी लोगों को बेच दीं।

अब तक की जांच में पता चला है कि आगरा, मेरठ, उन्नाव और नैनीताल में भी इसी तरह की नजूल संपत्तियों पर कब्जा कर उन्हें बेचने का काम किया गया है। इन खुलासों ने न केवल कानपुर, बल्कि पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया है।

500 करोड़ की जमीन का सौदा मात्र 5 करोड़ में

कर्नलगंज थाना प्रभारी रवींद्र श्रीवास्तव के अनुसार, एपीफैनी नामक संस्था से जुड़ी लगभग 500 करोड़ रुपये मूल्य की सरकारी जमीन को आरोपियों ने महज 5 करोड़ रुपये में बेचने की साजिश रची। इस साजिश में वर्ष 2007 से धीरे-धीरे कई लोग शामिल होते चले गए और फर्जीवाड़ा सालों तक चलता रहा।

फर्जी अधिकारी बनकर कराई प्लॉटिंग

जांच में सामने आया कि आरोपियों ने फर्जी स्टांप पेपर और पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार कर, खुद को एलटीडीए (लखनऊ डिवेलपमेंट अथॉरिटी) का अधिकारी बताकर नजूल की जमीनों की प्लॉटिंग शुरू कर दी। इसके बाद कई भोले-भाले लोगों को सस्ती कीमतों पर प्लॉट बेच दिए गए

आरोपियों की पहचान और नेटवर्क

मुख्य आरोपी रेव टी जॉन, जो मूल रूप से हाथरस का निवासी है, ने इस पूरे रैकेट को लंबे समय से संचालित किया। उसका सहयोगी सैफ अली, आजमगढ़ का रहने वाला है। इसके अलावा अन्य आरोपी कानपुर और आसपास के जिलों से हैं, जो दस्तावेज तैयार करने से लेकर जमीन दिखाने और सौदा तय करने तक की भूमिका में थे।

आगरा, मेरठ, उन्नाव, नैनीताल में भी सक्रिय

पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि इसी मॉडल पर अन्य शहरों में भी नजूल की जमीनों का सौदा किया गया। इन शहरों में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर फर्जी कागज़ी प्रक्रिया के माध्यम से बिक्री की गई। इससे न केवल सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, बल्कि कई लोगों की गाढ़ी कमाई भी दांव पर लग गई।

चार्जशीट में दर्ज सभी खुलासे

कानपुर पुलिस ने इस पूरे मामले से जुड़े सभी दस्तावेज, गवाह और आरोपियों की स्वीकारोक्तियाँ चार्जशीट में शामिल कर ली हैं। चारों नए शहरों में भी स्थानीय प्रशासन से समन्वय कर जांच बढ़ाई जा रही है।

प्रशासनिक चूक या मिलीभगत?

यह घोटाला कई सवाल भी खड़े करता है —

  • इतने वर्षों तक सरकारी जमीनों पर फर्जी प्लॉटिंग कैसे चलती रही?
  • क्या प्रशासनिक अमले में कहीं मिलीभगत थी?
  • आखिर नजूल की भूमि का डाटा और स्वामित्व रजिस्टर कौन देखता रहा?

नजूल संपत्तियों की यह लूट किसी एक शहर तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका जाल प्रदेश के कई हिस्सों तक फैल चुका है। मामले में अभी कई परतें खुलनी बाकी हैं। अगर समय रहते कार्रवाई न की गई, तो यह घोटाला प्रदेश के सबसे बड़े भूमि घोटालों में से एक बन सकता है।

अब निगाहें प्रशासन पर हैं कि वह इस घोटाले की गहराई से जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करता है या नहीं। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि जिन लोगों ने अनजाने में इन फर्जी सौदों में पैसा लगाया है, उनके हितों की रक्षा भी की जाए।


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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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