कहानी : तुम हो तो मैं हूं

बीना राय

इतनी बड़ी कम्पनी में सीईओ के पद पर आसीन सर्वगुणसंपन्न और खूबसूरत अवंतिका कभी खुश नहीं दिखती थी ।अंगत उसका जुनियर ही था पर उसका सबसे अच्छा मित्र था। जब अंगत को अवंतिका के शराबी और क्रूर पति और उसकी पांच साल की बेटी रिया जो बोल नहीं पाती थी जिसके इलाज कराने में वह पति के रहते हुए भी अकेले संघर्ष कर रही थी का पता चला तो वह अवंतिका से मन ही मन प्यार करने लगा था।

अवंतिका के ससुराल में सभी उसके उपलब्धियों से ईर्ष्या करने वाले और उसके लिए उसके पति के गैरव्यवहार का फायदा उठाने वाले थे। वह ऐसे जीवन से पूरी तरह थक चुकी थी एक दिन जब बातों में बातों में बिफरते हुए अवंतिका ने कहा कि पति का प्यार वह जानती भी नहीं और किस्मत ने उसे आज तक यह महसूस करने का भी कभी मौका नहीं दिया कि उसके पति को उसकी ज़रा भी फिक्र है तो अंगत ने कह दिया कि वह उससे सच्चा प्यार करता है।

जीवन पर्यंत वह उसे निस्वार्थ और सच्चा प्यार करता रहेगा तो अवंतिका नाराज होकर बोली कि रहने दो मुझे इतनी हमदर्दी भी मत दिखाओ और तुम्हारी पत्नी का क्या होगा मैं उसके हिस्से का प्यार लेकर तुम्हारे घर में आग नहीं लगा सकती तब अंगत ने भी उसे अपनी पत्नी के हरदम मायके रहने और उसके सुख-दुख से कोई मतलब न रखने की बात बताई। उसने बताया कि शादी के दस सालों बाद भी उसकी पत्नी ने उससे कभी कोई हमदर्दी नहीं जताई और वह उससे सिर्फ अपने बेटे के लिए जुड़ा था क्योंकि वह अपने बेटे को इतनी कम उम्र में मां बाप दोनों में से किसी एक के भी प्यार से वंचित नहीं करना चाहता था।

उसकी पत्नी सिर्फ अपने बेटे और उसके पैसों से मतलब रखती लेकिन फिर भी इतना सब सुनने के बाद भी अवंतिका उसके पत्नी और एक बेटे के रहते हुए भी अपने लिए अंगत के प्यार को नहीं स्वीकार कर पाई तो एक दिन अंगत ने बिना पूछे ही उसके मांग में अपने नाम का सिंदूर लगाकर बोला कि तुम हो तो मैं हूं आज से तुम मेरे लिए ही श्रृंगार करोगी और मैं सिर्फ तुम्हारा हूं और रिया अब हम दोनों की ज़िम्मेदारी है पर इसके लिए मुझे तुमसे कोई चाह नहीं है और नहीं मुझे तुम्हें बदनाम करना, कोई जरूरी नहीं कि हम हमेशा एक साथ एक ही छत के नीचे रहें हम दूर रहकर भी हरदम एक दूसरे के सांसों में बसे रहेंगे।

उसने आस्ट्रेलिया में रहने वाले अपने एक डॉक्टर मित्र से रिया की सफल इलाज कराई जिसमें उसने अवंतिका से बिना बताए अपनी तनख्वाह के बहुत सारे पैसे लगाए और रिया को थोड़ा थोड़ा ही बोलना देखते हुए उसके चेहरे पर एक पिता की तरह ख़ुशी और संतुष्टि देखकर अवंतिका ने जीवन में पहली बार खुद को भी उन भाग्यशाली औरतों की तरह महसूस किया जिनके पति हर कदम उनका साथ निभाते हैं। अवंतिका के जीवन में उसे सच्चा प्यार देने और थोड़ी बहुत उसकी फिक्र करने वाले एक अच्छे साथी के सिवा कोई कमी नहीं थी।

अंगत आजीवन अवंतिका को अपनी पत्नी और उसकी बेटी को अपनी बेटी की तरह नि:स्वार्थ भाव से प्यार करता रहा जिसके प्यार और सच्ची चाहत के सहारे अवंतिका भी अपनी जिंदगी हंसी खुशी जी सकी। लोगों के नज़रों में वह एक शराबी और क्रूर को निभाने वाली बेचारी थी जिसे कभी अपने पति से प्यार, चाहत और सम्मान नहीं मिला पर वास्तविकता तो यह थी कि अंगत के प्यार और फिक्र ने उसका ध्यान दिखावटी शराबी और क्रूर पति से बिल्कुल हटा दिया था। समाज में आज भी ऐसे निस्वार्थ प्यार को निभाने वाले हैं जिन्हें जिस्म से कोई मतलब नहीं बल्कि वह आत्मा के संबंध को महत्व देते हैं और उस आत्मा के खुशी के लिए अपना प्यार के फ़र्ज़ को निभाते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर के भी सच्चे प्रेम में मन से हर्षित रहते हैं।

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