लघुकथा : स्लेट का रंग

लघुकथा : स्लेट का रंग, उसकी मां और ने उसकी बातों को सुनकर उसे कहा कि गांव के स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे भी पढ़ने जाते हैं और गर्मियों में वे स्कूल के बरामदे में बैठकर… राजीव कुमार झा की कलम से…
सरोज काफी छोटा बच्चा था और काफी नटखट था. एक दिन उसने घर में पुरानी स्लेट को आलमारी में देखा तो उसे लगा कि यह उसके काम की चीज है. वह अभी पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाता था और दिनभर खेलता कूदता रहता था इसलिए उसने स्लेट हाथ में लेकर अपनी मां को स्कूल में जाने के बारे में बताया.
उसकी मां और ने उसकी बातों को सुनकर उसे कहा कि गांव के स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे भी पढ़ने जाते हैं और गर्मियों में वे स्कूल के बरामदे में बैठकर पढ़ते हैं. जाड़े के मौसम में इन बच्चों को स्कूल के अहाते में घास पर धूप में बैठाकर पढ़ाया जाता था! सरोज स्कूल में जब मां के साथ वहां अपना नाम लिखाने गया तो सारे बच्चे उसे देखकर काफी खुश हुए और इसके बाद उसकी मां मैदान में जहां शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे थे.
वहां उसे बैठाकर छुट्टी के बाद आकर घर ले जाने की बात कहकर चली गयी. सरोज ने आज वर्णमाला के स्वरवर्ण का ज्ञान प्राप्त किया और अ लिखना सीखा. उसने शिक्षक को जब अ लिखकर दिखाया तो वह काफी खुश हुए. सरोज के घर में यह स्लेट बेकार ही पड़ी हुई थी , वह स्लेट को पाकर स्कूल में आकर पढ़ने लगा था . यह उसकी बड़ी बहन का स्लेट था.
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