साहित्य लहर
विदाई
सुनील कुमार
रीति ये कैसी जग ने बनाई है
कल तक थी जो अपनी
आज हुई वो पराई है।
अपने दिल के टुकड़े की
आज कर रहे विदाई है
खुशी की है बेला मगर
आंख भर आई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
आज किसी से है मिलन
किसी से जुदाई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
छुप-छुप कर रोए भैया
मां सुध-बुध बिसराई है
घड़ी विदाई की
आंख बाबुल की भर आई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
कलेजे पर रख पत्थर
बेटी की कर रहे विदाई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमारलेखक एवं कविAddress »ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, जिला : बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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