वनों को आग से बचाएं

ओम प्रकाश उनियाल
अक्सर गर्मी के मौसम में हर साल पहाड़ों के वनों में जगह-जगह आग लगने की घटना घटती है। जिससे न जाने कितनी बहुमूल्य वन-सम्पदा जलकर खाक हो जाती है। अनेकों वन्य-प्राणियों का जीवन खत्म हो जाता है। वनाग्नि से उठने वाले धुंए से पर्यावरण प्रदूषित होता है एवं तपिश बढ़ती है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचंड वनाग्नि की विभीषिका देखने को मिल रही है। वन धू-धूकर जल रहे हैं। वनों के आसपास व बीच में बसी बस्तियां प्रभावित हो रही हैं। बचे-खुचे जंगली जीव अपनी जान बचाने को गांवों की तरफ रुख कर रहे हैं। आग बुझाने के प्रयास में कई लोग अपनी जान तक गंवा बैठते हैं।
सरकार व वन विभाग विभिन्न माध्यमों से वनों को आग से बचाने के लिए लोगों को हर साल जागरूक करती है, इसके बावजूद संवेदनहीन, नासमझ व शरारती लोग जानबूझकर वनों को क्षति पहुंचाना अपना परम धर्म समझते हैं।
गर्मी के मौसम में पेड़ों के सूखे पत्ते, टहनियां व अन्य प्रकार की सूखी झाड़ियां व घास आग की छोटी-सी चिंगारी से एकदम धधकने लगते हैं। बीड़ी, सिगरेट पीने वाले विशेषतौर पर यह ध्यान रखें कि प्रयोग करने के बाद तुरंत बुझा दें।
प्रदेश का वन क्षेत्र काफी विस्तृत होने के कारण वन विभाग के साथ-साथ ग्रामीणों का दायित्व बनता है कि वनों की निगरानी व सुरक्षा का जिम्मा उठाएं। वनों को आग से बचाने के लिए ऐसा जागरूकता अभियान चलाएं जिसकी गूंज हर घर एवं बच्चे से लेकर बड़ों तक पहुंचे।
जल, जंगल, जमीन बचाने का नारा तो हमने दिया है लेकिन जब तक उसे धरातल पर न उतारा जाए तब तक वह नारा निरर्थक है। प्रकृति की यह अमूल्य धरोहर हमें बहुत कुछ देती आ रही है। कम से कम उसका ऋण तो चुकाएं। वरना साल दर साल वन कम होते जाएंगे और दुर्लभ वन्य प्राणी खत्म।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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