संतोषी सदा सुखी

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सुनील कुमार माथुर

संतोषी व्यक्ति जीवन में सदा सुखी रहता हैं चूंकि उसकी जरूरतें हभेशा सीमित होती हैं । वह न तो फिजूल खर्ची होता हैं और न ही लोभी व लालची । जब वह संतोषी व्यक्ति हैं तो उसके जीवन में कभी भी किसी वस्तु की कमी या अभाव नजर नहीं आता हैं । उसके लिए तो संतोष ही सबसे बडा धन हैं । कहने वाले कहते रहेंगे कि उसके पास भौतिक सुख सुविधाएं तो हैं नहीं क्या खाक संतोषी हैं । लेकिन ऐसा कहने वाले यह नहीं जानते कि जब उसके मन में ही संतोष हैं।

कोई इच्छा व अभाव नहीं है तब तो वह लखपति व करोडपति से भी अधिक धनवान है चूंकि लखपति व करोडपति के मन में कभी भी संतोष नहीं होता हैं । वे तो हर क्षण हाय धन – हाय धन ही करते रहते हैं लेकिन संतोषी व्यक्ति इस तरह से हाय धन – हाय धन नहीं करता हैं । धनी लोग तो संतोष पाने के लिए सदैव तरसते रहते हैं ।

जीवन में भक्ति की ज्योति सदैव जलती रहनी चाहिए । यह बुझनी नहीं चाहिए । प्रभु के नाम का हर वक्त स्मरण करते रहना चाहिए चूंकि परमात्मा का नाम लेने में कोई पैसा थोडे ही खर्च होता हैं फिर कंजूसी क्यों ? न जाने कब प्रभु किस रूप में हमारे घर आ जायें । वे तो अपने भक्तों के भाव के भूखें हैं । वे यह नहीं देखते हैं कि भक्त जो भोग लाया हैं वह ताजा हैं या बासी । ठंडा हैं या गर्म । जूठा हैं कि नहीं । भक्त निम्न जाति का है या उच्च जाति का । शिक्षित है या अशिक्षित । वह तो केवल अपने भक्त का भाव देखता हैं कि वह किस भाव से लाया हैं ।

हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमें नैतिक मूल्यों का पाठ पढाती हैं । यह करूणा , ममता , प्रेम व स्नेह की संस्कृति हैं न कि भोग विलास व मौज मस्ती की संस्कृति हैं । भारतीय सभ्यता और संस्कृति तो हमें तमाम व्यसनों से दूर रहना सिखलाती है । चूंकि यह विश्व की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति हैं । अतः परमात्मा से निस्वार्थ भाव से प्रेम कीजिए । एकाग्रचित होकर उनके नाम का स्मरण कीजिए । भजन – कीर्तन व सत्संग कीजिए ।

धर्म स्थलों पर जरूर जाईये । ईश्वर की पूजा पाठ करें । प्रभु के नाम का स्मरण करे । प्रभु की छवि को अपने मन में उतारे व उनके जीवन चरित्र को आत्मसात कीजिए । दीन दुखियों की सेवा करें । भूखें को भोजन करायें । गायों को चारा डालिए । समय – समय पर दान पुण्य करते रहना चाहिए । प्रभु आपका भला अवश्य ही करेंगे । चूंकि वे तो हमारे पालनहार है । बस व्यक्ति को हमेशा अपना कर्म करते रहना चाहिए और मेहनत मजदूरी से जी नहीं चुराना चाहिए ।

मुफ्त की चीजों से दूर रहें चूंकि मुफ्तखोरी की आदत इंसान को आलसी और निकम्मा बनाती हैं । जीवन को स्वर्ण की तरह चमकाना हैं तो मेहनत अवश्य ही करें । जब भी भोजन करें तो उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर ग्रहण करे उसमें कोई कमी न निकालें अपितु वह जैसा हैं उसे चुपचाप भगवान का प्रसाद समझ कर ग्रहण कीजिए । प्रसाद सदैव स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में ही होता हैं फिर भी आप कोई कमी निकालते हैं तो यह मां अन्नपूर्णा का अपमान ही कहा जायेगा.


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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