साहित्य चिंतन : कवि गोरख पांडेय का काव्य संसार
राजीव कुमार झा
गोरख पांडेय को हिंदी में नक्सलवादी धारा का कवि कहा जाता है ! उनकी कविताओं में वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह के स्वर की प्रधानता है और समाज में व्याप्त मानवीय असमानता – उत्पीड़न के प्रति क्षोभ के भावों की अभिव्यक्ति हुई है ! बनारस में शिक्षा पाने के बाद काफी सालों तक उनका जीवन दिल्ली में गुजरा और उनके जीवन के अंतिम दिन भी इसी शहर में व्यतीत हुए!
अपनी कविताओं में उन्होंने अपने बचपन और गांव के परिवेश को याद किया है और इस दृष्टि से बुआ के प्रति शीर्षक से लिखी उनकी कविता उल्लेखनीय है ! इस कविता में तत्कालीन ग्रामीण समाज के पुराने सामंती परिवेश और यहां औरतों की जिंदगी में व्याप्त अमानवीयता के अलावा कवि ने सदियों से जाति व्यवस्था के दायरे में भेदभाव और शोषण के अभिशाप को झेलते रहने वाले भूमिहीन किसान मज़दूरों के जीवन की बदहाली से जुड़े सवालों को शिद्दत से उठाया है!
गोरख पांडेय की मां का बचपन में ही देहांत हो गया था और उनका पालन पोषण उनकी काफी कम उम्र में ही विधवा हो जाने वाली उनकी बुआ ने किया था ! गोरख पांडेय ने रह कविता उनकी याद में लिखी है ! कविता की सरल और आत्मीय भाषा में समाज और जीवन के सवालों को उठाना और काव्य संवेदना में उनको समेटना आसान नहीं है और गोरख पांडेय की कविताओं को इसका सच्चा प्रमाण माना जाता है !
गोरख पांडेय ने जन संस्कृति मंच की स्थापना से देश में साहित्य और विविध कलारूपों के विकास के माध्यम से जनजीवन में सांस्कृतिक चेतना के विकास में भी सक्रिय रहे और आठवें दशक के इस कालखंड में इस संगठन ने हिंदी भाषी क्षेत्र के युवाओं की जीवनचेतना को गहराई से प्रभावित किया और इस काल में किसान मज़दूरों का आंदोलन भी सशक्त रूप से देश में संगठित होकर सामने आया!
गोरख पांडेय के कुछ गीत समाजवाद बबुआ धीरे – धीरे आयी और जनता के आवेले पलटनिया हिलेले झकझोर दुनिया जनसंघर्षों में संलग्न लोगों के बीच खूब लोकप्रिय हुए ! इसके अलावा इनकी कविताएं सभा संगोष्ठियों के दौरान दीवार पोस्टर के रूप में भी लोगों के द्वारा पसंद की जाती रहीं हैं ! यह काल गहन वैचारिक विरोधों का काल था और दिल्ली में सिक्ख विरोधी दंगों में सैकड़ों निर्दोष लोगों की हत्याओं के अलावा देश में जनसंघर्षों में शामिल जनता को भी सरकार के दमनचक्र का सामना करना पड़ रहा था!
गोरख पांडेय की कविताओं में शासक वर्ग के इस चरित्र को लेकर गहन विचार विमर्श को उपस्थित देखा जा सकता है ! गोरख पांडेय समाज में सदैव अमन चैन और सुख शांति देखना चाहते रहे और अपनी एक कविता शीर्षक ‘ हमारे वतन की नयी जिंदगी हो ‘ में उन्होंने अपने कवि हृदय के इन सुंदर मनोभावों को अद्भुत लय में प्रकट किया है –
‘ न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन नहीं कोई भी कायदा हिटलरी हो , नये फैसले हों नयी कोशिशें हों , नयी मंजिलों की कशिश भी नयी हो , हमारे वतन की नयी जिंदगी हो !
गोरख पांडेय की कविताओं में अपने समय और समाज से संवाद का गुण इन्हें पठनीय बनाता है और खड़ी बोली हिन्दी के अलावा भोजपुरी में भी इन्होंने कविताएं लिखी हैं ! ‘ ‘ बोलो यह पंजा किसका है ‘ 1984 में सिक्ख विरोधी दंगों के बारे में लिखी उनकी चर्चित कविता है ! ‘ समझदारों का गीत ‘ व्यंग्यात्मक शैली में उनकी लिखी कविता है ! उन्हें प्रतिबद्ध सामाजिक चेतना का कवि माना जाता है और जनचेतना की दृष्टि से उनकी कविताओं में संघर्ष का भाव विद्यमान है!
गोरख पांडेय का कम ही आयु में देहांत हो गया और दिल्ली के जे एन यू में जब वह पी – एच डी कर रहे थे तो एक दिन मानसिक असंतुन की दशा में उन्होंने आत्म हत्या कर ली ! इसके पहले शायद लंबे समय से वह अपने यार दोस्तों से भी दूर रह रहे थे और अकेलेपन से घिर गए थे ! इन परिस्थितियों में वह गांव भी नहीं लौट पा रहे थे और दिल्ली में रहना भी उनके लिए मुश्किल हो गया था ! इन्हीं दिनों जब अवसाद की दशा में जब वह एम्स में भर्ती थे तो उनके पिता भी उनसे मिलने दिल्ली आये थे !