खुशहाली के रास्ते
सुनील कुमार माथुर
जीवन में खुशियों की कोई कमी नहीं है लेकिन हमें खुशियों को ढूंढना नहीं आता हैं । यही वजह हैं कि अपार खुशियों का भंडार होने के बावजूद भी हम उस सुनहरे अवसर का लाभ न उठाकर दिन – रात दूसरों की चुगली या बुराई करते फिरते हैं या दूसरों के घरों में ताक-झांक कर यह देख रहें है कि कौन क्या कर रहा हैं । किसके घर में कौन आया कौन गया । बस इस ताक – झांक में ही अपना समय बर्बाद कर अपार खुशियों की अनदेखी कर दूसरों की प्रगति व उन्नति से जल भून कर अपना समय व स्वास्थ्य खराब कर रहें है जो जीवन का एक दुखद पहलू ही कहा जा सकता हैं ।
जो जीवन में मेहनत करने से एवं परिश्रम करने से जी चुराता हैं वह अपने जीवन में खुशहाली के रास्ते स्वंय बंद करता हैं । जहां कुछ नया करने की चाह हैं वही प्रगति व खुशहाली है । कभी भी किसी को बिना वजह आलोचना करके नीचा दिखाने का प्रयास न करें । ऐसा करना कोई महानता का कार्य नहीं है अपितु बुराइयों में भी जो अच्छाइयों को ढूंढ पाता हैं वही महान् व्यक्ति कहलाता हैं ।
इसलिए जब भी किसी के कार्य की सराहना करें तो दिल से करें । चेहरे पर प्रसन्नता का भाव होना चाहिए तभी कार्य की सराहना करने में आनंद हैं । अन्यथा रुआंसा मुंह लेकर किसी की सराहना करने में कोई आनंद की प्राप्ति नहीं होती हैं । अपितु वह मात्र एक औपचारिकता मात्र बनकर रह जाती हैं हमें कभी किसी से मन मुटाव नहीं रखना है अपितु दिल की दूरियों को भिटाना हैं ।
एक भारत श्रेष्ठ भारत की बात तभी कही जा सकती हैं जब हम सभी का फोक्स दिलों में बनी ही दूरियों को मिटाने का हो । दूरियां चाहे दिलों की हो , भाषा या व्यवहार की हो । इनको दूर करना बहुत बडी प्राथमिकता हैं । इन दूरियों को मिटाकर ही हम एक नये भारत का नव निर्माण कर पायेंगे । इसके लिए हमें हमारी मानसिकता को बदलना होगा । अगर हम इस मिशन में शत – प्रतिशत सफलता हासिल कर पाते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे चारों ओर खुशियां ही खुशियां महकेगी । बस शुरुआत हमें अपने से करनी होगी।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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