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उत्तराखंड की नदियाँ : धर्म, संस्कृति और पर्यावरण का संगम

उत्तराखंड की नदियाँ : धर्म, संस्कृति और पर्यावरण का संगम… यहाँ “दिव्य ज्ञान” के मंदिर में भगवान शिव के (अग्नि) रूप दुर्गा, सर्वश्रेष्ठ देवी, काली के सबसे भयानक रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली चंडिका के गढ़वाल में नौ और कुमाऊँ में दो मंदिर,  चेचक की देवी शीतला के  अल्मोड़ा, श्रीनगर, जागेश्वर और अन्य स्थानों में समर्पित मंदिर हैं। #सत्येन्द्र कुमार पाठक

सनातन धर्म संस्कृति में उतराखण्ड की नदियाँ  महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। नदियों में भागीरथी, अलकनन्दा, मंदाकनी, यमुना और सहायक नदियाँ एवं झीलें मानव संस्कृति के लिए आस्था का केंद्र है। हिमालय की चोटियों के राजसी ग्लेशियर से प्रवाहित नदियाँ   भारतीय, नेपाली और तिब्बती सीमाओं पर पाए जाते है उत्तराखंड की नदियाँ में  काली, टोंस, अलकनंदा, भागीरथी, कोसी आदि हैं। उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर के शीर्ष पर स्थित गौमुख से भागीरथी नदी निकल कर देवप्रयाग में अलकनंदा के साथ मिलकर संगम बनाती है।संतोपथ ग्लेशियर और भागीरथी खरक ग्लेशियर का संगम से प्रवाहित होने वाली अलकनंदा नदी है। कालिंदी पर्वत श्रंखला पर 6365 मीटर उचाई पर स्थित यमुना ग्लेशियर ऋषिकुंड तक प्रवाहित होने के बाद उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम बनाती है। यह स्थल को त्रिवेणी, प्रयाग संगम कहा जाता है।

भागीरथी नदी की 80 किमी प्रवाहित होने वाली  सहायक भिलंगना नदी  में घुत्तु, बिरोदा, कल्याणी, भेलबाही, घोंटी नदियाँ  टिहरी में भागीरथी में गिरती है।  गंगा नदी सभी नदियों में सबसे पवित्र है। पवित्र गंगा नदी का आत्मा,  दिव्यता, आध्यात्मिकता, मोक्ष और स्वच्छता के गुणों का प्रतीक  उत्तरकाशी में गोमुख से बहती है। गंगोत्री ग्लेशियर, सतोपंथ ग्लेशियर और खतलिंग ग्लेशियर इसके स्रोत हैं। गंगा नदी की सहायक नदियाँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। पिथौरागढ के कालापानी के समीपधौली गंगा की श्रंखला  3600 मीटर व 11800 फीट की उचाई पर स्थित गोमुख से  तवाघाट में काली नदी, व शारदा नदी और महाकाली नदी प्रवाहित है। मना का वसुंधरा झरने और संतोपथ झील की ओर जाने वाली मार्ग में सरस्वती नदी का उद्गम है। सरस्वती नदी का संगम अलकनन्दा नदी में मिलने से केशव प्रयाग स्थल मना में अवस्थित है।यहां पांडव पुत्र भीम द्वारा शिला रखी है। शिला को भीम पुल कहा जाता है। मार्ग में गिरता है।  पहाड़ पानी के समीप सातताल झील का मुहाना किच्छ से  103 किलोमीटर तक प्रवाहित होने वाली गौला नदी  रामगंगा से  गौला नदी निकलती है। गोरी गंगा को जिसे गोरी गाड ​​और घोरी गंगा कहा गया है।

पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील में बहने वाली गौरी गंगा नदी है। यह नदी मिलम ग्लेशियर से 104 किलोमीटर तक बहती है और जौलजीबी में काली नदी में मिल जाती है। हिमालय में धारपानी धार के पास से  प्रारंभ होकर कोसी नदी  उत्तर प्रदेश से होकर रामगंगा नदी में मिल कर  नदी घाट, बुजान, अमदाना, बेताल और रामनगर शहरों को सिंचाई का पानी भी उपलब्ध कराती है।  केदारनाथ के समीप  चोराबारी ग्लेशियर से मंदाकिनी नदी  बहने वाली अलकनंदा नदी इसकी सहायक नदी  और सोनप्रयाग में वासुकीगंगा नदी से पानी प्राप्त कर रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा में मिलत्ती है मंदाकिनी नदी और अलकनंदा नदी के संगम स्थल को रुद्रप्रयाग कहा जाता है। नंदाकिनी नदी – नंदा देवी राष्ट्रीय वन में नंदा घुंघटी ग्लेशियर विशाल नंदाकिनी नदी को पोषण देते हैं।  मंदाकिनी  नदी 56 किलोमीटर तक बहती और फिर पंच प्रयागों में से नंदप्रयाग पहुँचती हुई  अलकनंदा नदी से मिलती है।

सरयू नदी – कुमाऊं क्षेत्र में कई नदियाँ निकलती हैं। सरयू उत्तराखंड की एक प्रमुख नदी है जो कुमाऊं क्षेत्र से निकलने वाली सरयू नदी  सरमूल से शुरू होती है और पंचेश्वर पहुँचने से पहले 145 किलोमीटर तक बहती है। नदी खूबसूरत मल्ला कत्यूर घाटी से होकर गुज़रती है, जहाँ यह कई बड़ी और छोटी सहायक नदियों से मिलती है।टोंस नदी –  गढ़वाल हिमालय पर्वतों से होकर गुजरने वाली  टोंस नदी कलसी के पास यमुना नदी से मिलकर  दून घाटी में यह बहुत सारा पानी ले जाती है। यमुना की सबसे लंबी सहायक टोंस  148 किलोमीटर तक फैली हुई है।नायर नदी –  गंगा नदी की 94 किमी लंबी सहायक नायर  नदी  पौड़ी जिले में गढ़वाल दूधातोली पहाड़ियों से निकलती है। पिंडारी नदी –  पिंडारी ग्लेशियरों से बहने वाली पिंडारी नदी  105 किलोमीटर तक पर प्रवाहित होती हुई भगोली, कुलसारी, नौटी और थरली गाँवों से होकर गुजरती है।

नायर नदी (पश्चिमी) – पौड़ी जिले में गढ़वाल की दूधातोली पहाड़ियों से 91 किमी लंबी नायर पश्चिमी नदी  निकलती है। धौलीगंगा नदी-कुमाऊं – कजली नदी सहायक धौलीगंगा नदी कुमाऊं मंडल से होकर बहती  हुई  गोवनखाना हिमानी से प्रारम्भ  होकर तावधार में समाप्त होती है। रामगंगा नदी (पश्चिमी) रामगंगा पश्चिम नदी पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में दूधातोली पहाड़ियों से 155  किमी लंबी रामगंगा पश्चमी नदी निकलकर जलग्रहण क्षेत्र 30,641 वर्ग किलोमीटर में फैली  है। गौरवशाली उत्तराखंड  को  “देवभूमि” व देवताओं की भूमि से सम्मानित किया गया है। उतराखण्ड राज्य में पवित्र। नदियों में गंगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, यमुना, बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ मंदिर, गंगोत्री, यमुनोत्री  तीर्थस्थल हैं। चार धाम, पंच केदार, पंच प्रयाग, पंच बद्री, शक्ति पीठ और सिद्ध पीठ पवित्र मंदिर हिमालय की शांति में पहाड़ी क्षेत्रों में सुशोभित और आभा को दिव्य बनाते हैं।  देवताओं के दिव्य हस्तक्षेप में आत्मसमर्पण कर और पहाड़ी मंदिरों के आध्यात्मिक आनंद में आनंदित होता है।

यहाँ “दिव्य ज्ञान” के मंदिर में भगवान शिव के (अग्नि) रूप दुर्गा, सर्वश्रेष्ठ देवी, काली के सबसे भयानक रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली चंडिका के गढ़वाल में नौ और कुमाऊँ में दो मंदिर,  चेचक की देवी शीतला के  अल्मोड़ा, श्रीनगर, जागेश्वर और अन्य स्थानों में समर्पित मंदिर हैं। हजारों मंदिरों की भूमि सहस्त्र वर्षों  से ऋषि-मुनि, संत भगवान शिव  के हिमालय स्थित निवास पर जाते और वासुदेव, सर्वशक्तिमान से आशीर्वाद मांगते रहे हैं। हरिद्वार भारत के सप्त पुरी या सात सबसे पवित्र प्राचीन शहरों में से हरिद्वार   प्रमुख तीर्थ स्थल है। ऋषिकेश में मंदिर और आश्रम  हैं। भगीरथी गंगा और अलकनन्दा नदी के संगम पर अवस्थित देवप्रयाग है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र तीर्थस्थल गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ मिलकर  चार धाम सर्किट बनाते हैं।,  पंच केदार मंदिर भगवान शिव को समर्पित पाँच मंदिरों का समूह है। उत्तराखंड के मंदिरों को श्रेणी में केदारखंड- जिसमें गढ़वाल मंडल के मंदिर और मानसखंड-  के कुमाऊं मंडल के मंदिर हैं। उतराखण्ड राज्य में 147 प्राचीन मंदिर है।

प्रबोधनी व भगवन विष्णु और तुलसी विवाह है जेउष्ठान

सिख धर्म के 10वें गुरु गोविंद सिंह का कर्म भूमि, धनरिया का पवित्र हेमकुंड, हेमकुंड साहिब, गोविंद घाट, ऋषिकेश का गुरुद्वारा,लक्ष्मण झूला, नीलकंठ महादेव, गीताप्रेस, योग केंद्र, जोशीमठ में भगवान नरसिंह, भगवान सूर्य आदि देव, देव प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग, सोन प्रयाग, केशव प्रयाग, विष्णु प्रयाग, हरिद्वार का हरि की पैड़ी, कनखल पवित्र स्थान है। नारायण पर्वत, नर पर्वत, द्रोण पर्वत, धौला गिरी पर्वत, केदार चट्टी, वसुधरा आदि स्थल पवित्र है।


उत्तराखंड की नदियाँ : धर्म, संस्कृति और पर्यावरण का संगम... यहाँ "दिव्य ज्ञान" के मंदिर में भगवान शिव के (अग्नि) रूप दुर्गा, सर्वश्रेष्ठ देवी, काली के सबसे भयानक रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली चंडिका के गढ़वाल में नौ और कुमाऊँ में दो मंदिर,  चेचक की देवी शीतला के  अल्मोड़ा, श्रीनगर, जागेश्वर और अन्य स्थानों में समर्पित मंदिर हैं। #सत्येन्द्र कुमार पाठक

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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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