पारंपरिक जीवन का वास्तविक उदाहरण है ‘ग्रामीण जीवन’
पारंपरिक जीवन का वास्तविक उदाहरण है ‘ग्रामीण जीवन’, खेल और न्यौला का गायन जीवन के दुखों का बयान भी करता है और खुशी का इजहार भी करता है। इनको गाकर, गुनगुनाकर अपने जीवन के उच्च और निम्न पलों का बयान भी किया जाता है।
देवभूमि, एक ऐसा शब्द है, जिसका वास्तविक उदाहरण ग्राम्य जीवन से, ग्रामसभाओं से और ग्रामीण लोगों के भाई-चारे से परिलक्षित होता है। कम से कम इतना तो कि शहरों की तुलना में ग्राम्य जीवन में वो बाबा-मुनि और महात्मा नहीं हैं, जो ढोंग और घुमक्कड़ बातों का चोला पहनकर रखते हैं। गांव के रीति-रिवाज, परंपरायें और जीवन-यापन एक उच्च श्रेणी को प्रदर्शित करता है।
बहरहाल, आज हम बात करेंगे, गांव के उन्हीं रीति-रिवाजों और परम्पराओं की, जो अब समाप्ति की ओर हैं। जिनको पहाड़ी भाषा में ‘खेल’ और ‘न्यौला’ बोला जाता है। खेल और न्यौला काव्यात्मक विधा का अंग हैं और जिनको महिलाओं और पुरूष का एक समूह गोल घेरा बनाकर गायन के रूप में प्रस्तुत करता है।
खेल और न्यौला का गायन जीवन के दुखों का बयान भी करता है और खुशी का इजहार भी करता है। इनको गाकर, गुनगुनाकर अपने जीवन के उच्च और निम्न पलों का बयान भी किया जाता है। होली के गीत, दीपावली में घर-घर जाकर भैलो (प्रसाद) लेकर अपने सिर पर रखना और किसी के घर सन्तानोउत्पत्ति हो, तब भी खेल, न्यौला और इन गीतों को गाया जाता है।
आप भी नीचे दिये गये खेल और न्यौला से संबंधित वीडियो देखें, जिससे कि ग्रामीण रीति-रिवाजों और परंपराओं को जानने का हम प्रयास करें। लुप्त होती इन परंपराओं को अपने मस्तिष्क में संजोकर रख पायें प्रयत्न करें कि किस तरह इनको लुप्त होने से बचाया जा सके।
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उतम , सराहनीय आलेख , युवापीढ़ी के जीवन में एक नई प्ररेणा है
Very nice bhai ok done
Very good sir bahut achaa