हर तरफ रावण ही रावण

ओम प्रकाश उनियाल

दशहरा हर साल मनाया जाता है। दस दिन तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लीलाओं के माध्यम से समाज तक यह संदेश भी पहुंचाया जाता है कि बुराई एवं अहंम करने का परिणाम अंतत: बुरा ही होता है। जिस प्रकार से रावण का हश्र हुआ था। प्रकांड विद्वान होते हुए भी उसकी बुद्धि भ्रष्ट थी।

अपने बल एवं विद्वता पर उसे यह अहंकार था कि उसको कोई भी शक्ति पराजित नहीं कर सकती। लेकिन जब समय का कुचक्र उसके सिर पर मंडराने लगा तो भगवान राम के हाथों ही उसका वध हुआ। यही स्थिति आज भी बनी हुई है। लोगों की विचारधारा बदलती जा रही है। अन्याय, पाप करने में कोई जरा-भी नहीं हिचकता।

हर तरफ राक्षसी राज का बोलबाला है। जिस राम-राज्य की हम कल्पना करते आ रहे हैं वह हमसे दूर होता जा रहा है। क्योंकि हमारा मन कलुषित होने के कारण तमाम बुराईयों का घर बन चुका है। रावण रूपी राक्षस हरेक के मन में बस चुका है।

हर साल हम मात्र दिखावे व मनोरंजन के लिए रावण के पुतले दहन करते हैं लेकिन अपने मन के भीतर बैठे रावण को मारने के लिए अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं। अब न राम है न राम जन्मेगा। जब राम नाम पर भी राजनीति हावी हो तो भला राम के प्रति भावना भी कैसे पैदा होगी?


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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