कविता : पुस्तक की सीख

सुनील कुमार माथुर
ओ मेरे दोस्तों ! मैं हूं पुस्तक
तुम मुझें न केवल कागज समझों
अपितु
तुम मेरा महत्व समझों
मेरे में अथाह ज्ञान का भंडार छिपा हैं
बस तुम लगन और मेहनत के साथ
अध्ययनरत रहकर
मेरे में छिपा ज्ञान अर्जित करों
तुम पढ लिखकर अपना और
अपने परिजनों का नाम रोशन कीजिए
ओ मेरे दोस्तों , मैं हूं पुस्तक
तुम मुझे न केवल कागज समझों
अपितु मेरा महत्व समझों
मैं बोल नहीं सकती हूं फिर भी
तुम्हें संस्कारवान व चरित्रवान बनाने में
अपने आप को समर्पित कर देती हूं
जो मेरी बात को सभझ गया
समझों उसका जीवन सफल हो गया
और
जिसने मेरा उपहास उडाया
वह कोरे कागज की तरह
कोरा और अनपढ ही रह गया अतः
मेरे दोस्तों ! मैं हूं पुस्तक
तुम मुझें न केवल कागज समझों
अपितु मेरा महत्व समझों
पढ – लिखकर समाज व राष्ट्र की सेवा करों
जो मेरी बात मान लेगा , वहीं ज्ञानी कहलायेगा
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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