कविता : दो सखियाँ और एक कहानी…

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कविता : दो सखियाँ और एक कहानी… फिर झटक कर हर झिझक को काटती और चीरती तलवार सी एक लेखनी ले बैठ कर उसने किया कैद लम्हों को किया हर भाव को, हर ज़ख्म को उसने चलाई लेखनी और भर दिया हर घाव को… ✍🏻 सत्यवती आचार्य, चंडीगढ़

एक मुलाक़ात
आहिस्ता-आहिस्ता
घनी-दर-घनी होती हुई
दोस्ती में बदलती हुई
दो अजनबी-मीत और नीर के बीच
मुलाकातें
दिन को रात
व रात को दिन में होता हुआ
देखती हुई
मुलाक़ात-दर-मुलाक़ात
गहरी होती हुई-
रातें और बातें

रात के धुँधलके में खुलती
पुरानी डायरियाँ
बातें गुपचुप
पन्नों में सिमटी
बचपन की अठखेलियाँ
नटखट गुप्त ठिठोलियाँ
चाँदनी रात में पल -पल
खुलते दो दिल
सखियों के नीर और मीत
बढ़ती हुई प्रीत

खोल कर दिखाती
घाव दिल के
तो कभी सुनातीं कहानियाँ
अंगड़ाइयों की, रुसवाइयों की
कभी ख़ुशी कभी ग़म की
मीत ने किया ग़ौर,
कि -नीर
एक छुई-मुई, अंतर्मुखी सा व्यक्तित्व
और जब अधर खोले
तब व्यक्त करे सिर्फ सत्व
न शब्द ज़्यादा, न भाव कम
नयनों से बोले हर दम

मीत बोली, नीर सुन!
बंद कर ये नयन बोली
थाम ले ये लेखनी तू
शब्द लिख कर बाँट ले
खाली कर ये दिल भरा
सुन ज़रा आ सुन ज़रा
बाँटने से दोगुना होता है सुख
और होता आध से भी अर्ध दुःख
चल हूँ मैं तेरे साथ
भर दे कागज़ों के ढेर को
हल्का तू कर ले दिल ज़रा
आ ज़रा इधर आ ज़रा

चल उठ न कर तू देर
आजा बाँट ले खुशियां व ग़म
खाली कर दिल का घड़ा
आ सुन ज़रा इधर आ ज़रा

तब यूँ हुआ, कुछ यूँ हुआ:



फिर झटक कर
हर झिझक को
काटती और चीरती
तलवार सी एक लेखनी ले
बैठ कर उसने किया
कैद लम्हों को
किया हर भाव को, हर ज़ख्म को
उसने चलाई लेखनी
और भर दिया हर घाव को



हर धधकते और सुलगते
पल को बाँटा प्यार से
उंँडेल कर खाली किया
क्षण-क्षण के भावों का घड़ा



हर हास और परिहास को
उसने दिया धत्ता बता
बोली सखी! मेरी मीत
तू गुरु,तू ही मीत
अब तू आ ज़रा और ये बता गुरमीत!
अच्छा लगा या बुरा लगा “सच्ची बता ” सच्ची बता!

( कवयित्री, एडवोकेट नीरू शर्मा जी की कविता -संग्रह ” सच्ची बता “के लोकार्पण के उपलक्ष में लिखी,सच्ची घटना पर आधारित, बिहाइंड – द -स्क्रीन एंड सीन की एक झलक )


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कविता : दो सखियाँ और एक कहानी... फिर झटक कर हर झिझक को काटती और चीरती तलवार सी एक लेखनी ले बैठ कर उसने किया कैद लम्हों को किया हर भाव को, हर ज़ख्म को उसने चलाई लेखनी और भर दिया हर घाव को... ✍🏻 सत्यवती आचार्य, चंडीगढ़

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