साहित्य लहर
कविता : मेरे ग़म
बंजारा महेश राठौर सोनू
किसने बताया मजबूरियों को मेरे घर का पता
रोज – रोज मेरे घर आकर बैठ जाती है
और कौन सा गम बाकी रह गया बता- ए-जिंदगी
सोचते सोचते दिल में गम सी बैठ जाती है
किसकी इबादत करें किसकी करें हम बंदकी
पुकारते – पुकारते रब आवाज बैठ जाती है
तलाशते हैं झूठे रब को बात नहीं मानते खुद की
दर्शन के इंतजार में आंखों की पुतली बैठ जाती है
और कितना लिखे तुझे राठौर कुछ तो बता जिंदगी
आखिरी पन्नें की उम्मीद में कलम बैठ जाती है,
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »महेश राठौर सोनूलेखक एवं कविAddress »गाँव राजपुर गढ़ी, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेशPublisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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