कविता : प्रेम के दिन

राजीव कुमार झा
याद आते
उस दिन का आना
तुम्हारा बहाना
शाम में चला जाना
नदी का गीत गाना
सुबह किरनों का
पेड़ की डालियों पर
इठलाना
यादों का बवंडर
उमड़ा चला आता
बरसात के बाद
जब कार्तिक आता
त्योहार के दिन
वापस लौट आते
हम फिर गीत गाते
वसंत के दिन
हम खेतों के पास
जाते
आज धूप
कुहासे में
हंस रही है
नदी अपनी गति से
बह रही है
थोड़ी देर में धूप
खिड़कियों पर
चली आयी
चिड़िया मुंडेर पर
आकर
मुस्कुराई
होली में मन
बावला सा हो गया
रंगबिरंगे भावों से
मन
भर गया
यह शाम की
चुनरी
नदी जल में
झांकती
यह चांदनी रात
मुस्कुराती
सो रही
पीपल के
पेड़ की हर पात !
अरी सुंदरी
अब धूप
तेज होती जा रही
ग्रीष्म के दिन
चले आये
सबको बिना बताए
पेड़ों से पत्ते
पुराने
झरने लगे
प्रेम के पत्ते नये
उगने लगे
अब धूप में
सुंदर हवा
मन के तालाब के
पास आकर
खड़ी है
जीवन की छांव में
नीम अब खूब
हरी भरी है!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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