कविता : इक मर्द दिखाई देता है
कविता : इक मर्द दिखाई देता है, करुणा कलित हृदय में पीड़ा डेरा डाले सोती है, अनेक भाव में अभाव लगाकर एक सूत्र में पिरोती हैं, नहीं किसी से कहने वाला बस अर्ज दिखाई देता हैं, ज़ब भी आँखों से ओझल कोई दर्द दिखाई देता है, सिद्धार्थ गोरखपुरी की कलम से…
ज़ब भी आँखों से ओझल कोई दर्द दिखाई देता है
क्या ध्यान से देखा है सबने इक मर्द दिखाई देता है??
करुणा कलित हृदय में पीड़ा डेरा डाले सोती है
अनेक भाव में अभाव लगाकर एक सूत्र में पिरोती हैं
नहीं किसी से कहने वाला बस अर्ज दिखाई देता हैं
ज़ब भी आँखों से ओझल कोई दर्द दिखाई देता है
क्या ध्यान से देखा है सबने?? इक मर्द दिखाई देता है
जहमत के आगे फुरसत,कुछ कदम नहीं चल सकती है
क्या किसी को इल्म हुआ है कभी
के कितना छल सकती हैं
दुख के आगे केवल बस केवल फर्ज दिखाई देता हैं
ज़ब भी आँखों से ओझल कोई दर्द दिखाई देता है
क्या ध्यान से देखा है सबने?? इक मर्द दिखाई देता है
मौन अधर, बन मूक चले, जरूरतें तांडव करती हैं मन में
बस भागदौड़ और गुणा -भाग इससे इतर क्या जीवन में
क्या गरमी….क्या बारिश…नहीं सर्द दिखाई देता है
ज़ब भी आँखों से ओझल कोई दर्द दिखाई देता है
क्या ध्यान से देखा है सबने?? इक मर्द दिखाई देता है
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