कलम का सिपाही व सजग प्रहरी ‘एम मनोहर एच थानवी’

सुनील कुमार माथुर

अगर इंसान जीवन में कुछ करने की ठान ले तो दुनियां की कोई ऐसी ताकत नहीं है जो उसे अपने मिशन तक पहुंचने से रोक सकें । एम मनोहर एच थानवी नगर सुधार न्यास जोधपुर में लिपिक के पद पर कार्यरत थे उस समय उन्होंने अधिकांश जनता को दुःखी व पीडित देखा । उनसे जनता का दुःख व पीडा देखी नहीं गयी और उन्होंने जनता की समस्याओं का तत्काल समाधान के लिए पत्र – पत्रिकाओं का सहारा लिया और सम्पादक के नाम पत्र लिखने लगें । उनके पत्र हर रोज प्रमुखता के साथ प्रकाशित होने लगे फिर क्या था उनकी ठनठनी लेखनी चल पडी ।

अब हर रोज सम्पादक के नाम पत्र , निगाहें आपकी , जनकलम , लोकमंच , आपकी बात , चिट्ठी आई , जनवाणी , मंच हमारा पत्र आपके , पाठकों के पत्र , शिकवे शिकायतें, जन अदालत, ये क्या कहते है ? खुला मंच । आदि आदि स्तम्भों में उनके ध्दारा लिखी गई जनता की समस्याएं प्रकाशित होने लगी और समस्याओं का तत्काल समाधान भी होने लगा । वे एक तरह से जनता के हितैषी बन गये ।

दैनिक जनगण , जलतेदीप , प्रतिनिधि, तरूण राजस्थान, नवजीवन, नवज्योति, राष्ट्रदूत, रोजमेल, उदय राजस्थान, जनयुग, नवभारत , हिन्दुस्तान, मिलाप । इसके अलावा साप्ताहिक अभ्यदीप , अभ्यदूत , आगीवांण, कंट्रोलर, हिन्दू संदेश, राष्ट्रदूत, सूर्यमुखी , दिनमान, रेलदूत पाक्षिक व भू भारती पाक्षिक तथा पांचजन्य में भी उनके पत्र प्रमुखता के साथ प्रकाशित होने लगे ।

थानवी के ध्दारा लिखे गये हजारों पत्र जन समस्याओं को लेकर लिखे गये और पत्रों पर कार्यवाही भी होती थी । शायद ही शहर , नगर , राज्य या राष्ट्र की कोई समस्या ऐसी रही हो जिस पर एम मनोहर एच थानवी ने अपनी ठनठनी लेखनी न चलाई हो । वे बाद में नगर सुधार न्यास जोधपुर में वरिष्ठ लिपिक के पद से पदोन्नत होकर पी आर ओ के पद से सेवानिवृत हुए लेकिन अपने जीवनकाल के अंतिम समय तक जन समस्याओं को उजागर करते रहें ।

उस वक्त उनके अलावा सुनील कुमार माथुर , चेतन चौहान , हिम्मत कुमार सोनी , गोपाल सिंह राठौड , मदन लाल रंगा , नियमित रूप से संपादक के नाम पत्र लिखा करते थे और वे प्रमुखता के साथ प्रकाशित होते थे ।

आज न तो जन समस्याओं को उजागर करने वाले लोग है और न ही पत्र पत्रिकाओ में सम्पादक के नाम पत्र का कोई स्तम्भ है चूंकि आज सम्पादक मंडल ने पत्र पत्रिकाओ को व्यवसायिक बना लिया है । उन्हें जनसमस्याओ से कोई लेना देना नहीं है । यही वजह है कि आज देश भर में समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है लेकिन समाधान नहीं है ।

चूंकि पत्रकारिता जो पहले एक मिशन था वह मिशन आज समाप्त हो गया है और उसने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया है । थानवी के पिता स्व0 हरिदास थानवी थानेदार थे जिसके कारण जनता के दुःख दर्द को एम मनोहर एच थानवी जल्दी समझ जाते थे चूंकि उन्होंने अनुशासित जीवन जीया । माता पिता ने न केवल एम मनोहर एच थानवी को किताबी शिक्षा ही दिलाई , वरन् अच्छे संस्कार भी दिये । वे बाहर से भले ही नारियल की तरह से कठोर थे लेकिन भीतर से नारियल की गिरी की तरह नरम भी थे।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

7 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights