साहित्य लहर

महेश नवमी विशेष : भगवान महेश का स्वरूप

महेश नवमी विशेष : भगवान महेश का स्वरूप… ओढ़रदानी, महेश्वर, रुद्र का स्वरूप सभी देवताओं से विचित्र है, पर यदि आप शिवशंभू की वेश भूषा का विश्लेषण करेंगे तो आपको शिव जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराते दिखाई देंगे। #डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

गर्व है माहेश्वरी है महेश की संतान।
शिव के आशीर्वाद का पाया है वरदान।।
महादेव की कृपा से बनाना है कुल महान।
भगवान महेश के वंशज पा रहे प्रतिदिन सम्मान।।

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान महेश के आशीर्वाद से हुई है, इसलिए इस समाज के लोग भगवान महेश को अपना आराध्य देव मानते है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी का उत्सव मनाया जाता है। महादेव की कृपा से इस दिन ही माहेश्वरी समाज की नींव रखी गई। भगवान महेश और देवी भगवती ने 72 राजपूत उमराओ को जोकि ऋषियों के श्राप के कारण पत्थर बन गए थे उन्हें पुनः जीवनदान दिया एवं आशीर्वाद दिया की आज से तुम्हारे वंश पर हमारी अमिट छाप रहेंगी और तुम माहेश्वरी कहलाओगे।

शिव ईश्वर का सत्यम-शिवम-सुंदरम रूप है। शिव वो है जो सहजता एवं सरलता से सुशोभित होते है। वे ऐसे ध्यानमग्न योगीश्वर है जो नीलकंठ बनकर अपने भीतर विष को ग्रहण किए हुए है और भुजंगधारी बनकर विष को बाहर सजाए हुए है। इसके विपरीत भी उमापति की एकाग्रता, शांतचित्त रूप और ध्यान में कहीं भी न्यूनता परिलक्षित नहीं होती। वैभव देने वाले भोलेनाथ स्वयं वैरागी रूप में विराजते है। ध्यान की उत्कृष्ट पराकाष्ठा शिव अपने आराध्य श्रीराम के स्वरूप को अपने भावों की माला से ध्याते है। सृष्टि के कल्याण के लिए शांत भाव और सहजता से विषपान को स्वीकार करते है।

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की नवमी।
माहेश्वरी की 72 खापें इस दिन है जन्मी।।
72 खापों से है समाज में जाने जाते।
भगवान के महेश के वंशज माहेश्वरी है कहलाते।।

शिव से उच्च स्थान किसी को भी प्राप्त नहीं है। उन्हें स्वयं देवताओं ने महादेव के संज्ञा दी है। उनके ध्यानमग्न स्वरूप में अंतरआनंद की छवि समाहित है जो त्याग की प्रतिदीप्ति एवं सत्य स्वरूप है। शिव सत्य के स्वरूप को अंगीकार करते है, जो कृपानिधान आशुतोष सर्वज्ञ है उन्हीं शिव तत्व में जीवन का सार समाहित है। ध्यान स्वरूप शिव अन्तर्मन की शक्तियों को जाग्रत करने की प्रेरणा देते है। स्वयं के स्वरूप को जानकर ही हम जीवन को श्रेयस्कर रूप प्रदान कर सकते है। विषम परिस्थितियों में भी ध्यान की उत्कृष्टता के निर्वाहक है शिव।

ओढ़रदानी, महेश्वर, रुद्र का स्वरूप सभी देवताओं से विचित्र है, पर यदि आप शिवशंभू की वेश भूषा का विश्लेषण करेंगे तो आपको शिव जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराते दिखाई देंगे। यह शिव कपूर की तरह गौर वर्ण है, पर सम्पूर्ण शरीर पर भस्म लगाकर रखते है और दिखावे से दूर जीवन को सत्य के निकट ले जाते है। यह भस्म जीवन के अंतिम सत्य को उजागर करती है। अतः शिव शिक्षा देते है कि सदैव सत्य को प्रत्यक्ष रखें। यह शिव जटा मुकुट से सुशोभित होते है।


जिस प्रकार शिव जटाओं को बाँधकर एक मुकुट का स्वरूप देते है वह यह शिक्षा देती है की जीवन के सारे जंजालों को बाँधकर रखों और एकाग्र होने की कोशिश करों, समस्याओं के जाल को मत फैलाओं। उसे समेटने की कोशिश करों। वे किसी भी प्रकार का स्वर्ण मुकुट धारण नहीं करते अतः मोह माया से शिव कोसों दूर है। शिव के आभूषण में भी सोने-चाँदी को कोई भी स्थान नहीं है। वे विषैले सर्पों को गलें में धारण करते है, अर्थात वे काल को सदैव स्मरण रखते है।


भगवान महेश का जीवन है अनुकरणीय।
उदारता है उनकी अनूठी और प्रशंसनीय।।
महेश भगवती की बनी रहे सदैव अनुकंपा।
72 खापों को मिलती रहे त्रिपुरारी की कृपा।।


कल्याणस्वरूप शिव की प्रत्येक लीला देवताओं, ऋषियों एवं समस्त प्राणीमात्र के लिए प्रेरणादायी है। समस्त देवी-देवताओं में शिव की वेशभूषा अद्भुत एवं विचित्र है। साधक शिव की हर वेशभूषा से जीवन के सत्य को जान सकता है। त्याग, ध्यान में लीन रहने वाले शिव अपनी वेशभूषा से साधक को जीवन का सच्चा अर्थ बताते है। महादेव ने मस्तक पर मोक्षदायिनी भागीरथी एवं चन्द्रमा, ललाट पर त्रिपुंड तिलक, हाथों में डमरू और त्रिशूल, गले मे सर्पो की माला, जटाधारी, बाघम्बर (बाघ चर्म) एवं हस्ति (हाथी चर्म) को धारण करने वाले है। वे शरीर पर भस्म लगाते है, भांग पीते है, शिव के हर प्रतीक के पीछे कुछ न कुछ गूढ़ ज्ञान एवं रहस्य छुपे हुए है।


शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि जब मोक्षदायिनी गंगा को वसुंधरा पर लाने की प्रार्थना की गई, तब सर्वाधिक चिंता का विषय उनके तीव्र वेग को नियंत्रित करना था। गंगा अपने तीव्र वेग के कारण पृथ्वी को छेदकर पाताल लोक में प्रविष्ट कर जाएगी। तब महादेव ने गंगा को अपनी जटाओं में लेकर उनके वेग को कम किया। उसके पश्चात ही गंगा धरती पर प्रवाहित हो सकी। शिव का एक ज्योतिर्लिंग सोमनाथ है जिसे प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जोकि चन्द्र देव द्वारा स्थापित किया गया था, जहां उन्हे आदिदेव शिव ने श्राप से मुक्त किया था। शिव मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करते है। चन्द्रमा मस्तिष्क के मनोभावों को भी नियंत्रित करता है और व्यक्ति की एकाग्रता को बढ़ाता है।


शिव इतने सरल देव है जो मात्र जल से प्रसन्न होकर भक्त की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते है। शिव शंकर की प्रत्येक वेशभूषा साधक को जीवन के सत्य से साक्षात्कार करवाती है कि किस प्रकार मानवजीवन त्याग, एकाग्रता, सरलता, सादगी से जीना चाहिए एवं कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ हो उसमे विचलित नहीं होना चाहिए।


भगवान महेश की स्तुति है सरल।
उनका आशीर्वाद बदल सकता है हमारा आगामी कल।।
इस दिन भगवान महेश की आराधना करेगी उद्धार।
शिव की पूजा करने वाला पार करता मझधार।।
महेश तो है समस्त देवताओं के लिए पूजनीय।
डॉ. रीना कहती, अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए माहेश्वरी समाज भी है वंदनीय।।

साहित्य अर्पण अंतरराष्ट्रीय मंच पर काव्य गोष्ठी का आयोजन


👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

महेश नवमी विशेष : भगवान महेश का स्वरूप... ओढ़रदानी, महेश्वर, रुद्र का स्वरूप सभी देवताओं से विचित्र है, पर यदि आप शिवशंभू की वेश भूषा का विश्लेषण करेंगे तो आपको शिव जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराते दिखाई देंगे। #डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights