आदर्श जीवन जीना भी एक कला है…

सुनील कुमार माथुर
आदर्श जीवन जीना भी एक कला है और जिसने इस कला को सीख लिया समझों उसका जीवन धन्य हो गया हैं । जीवन को रोते हुए जीएं तो जीवन यात्रा लंबी लगेगी और हंसते मुस्कुराते जीवन जीओगे तो जीवन यात्रा कब पूरी हो गई आपको पता भी नहीं चलेगा । अतः आराम से खुशहाल जीवन जीये ।
बच्चे जैसा देखते हैं वैसा ही तो सीखते है लेकिन जब हमारे सांसद व नेतागण बेहुदे शब्दों का इस्तेमाल करतें है तो सिर शर्म से झुक जाता है । हाल ही मैं एक सांसद व नेता जी ने राजस्थान की गहलोत सरकार को निकम्मी और भ्रष्टचारी सरकार बताया व उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार को मोनी बाबा की सरकार बताया । जब हमारे सांसद महोदय ऐसी बेहुदा बोल बोलते है तो हम आम जनता से क्या उम्मीद करें कि वो शालीनता से व्यवहार करेगे । बच्चे जैसा देखते है वही तो सीखते है । अतः हमेशा अच्छी बात करे ।
आज हर कोई मनमानी कर रहा हैं । जिधर देखों उधर भ्रष्टचार की गंगा बह रही है । हर कोई भ्रष्टचार की गंगा में डूबकी मार रहा हैं । हम जैसा व्यवहार अपने प्रति चाहते है वैसा ही व्यवहार दूसरो के प्रति करना चाहिए । सभ्य व्यवहार ही तो हमारे आदर्श व्यक्तित्व की निशानी है । शब्द भी एक प्रकार का भोजन हैं और कौन सा शब्द कब परोसना चाहिए यह आपको आना चाहिए । जो व्यक्ति शब्दों को परोसना सीख गया समझों वह दुनियां का सबसे बडा रसोइया हैं ।
जीवन में प्रेम , स्नेह , वात्सल्य की गंगा को बहाते रहिए । हम प्रेम से बिगडने काम भी आसानी से निपटा सकतें है लेकिन क्रोध , अंहकार में हम अपने बने बनाये काम को बिगाड देते है । अतः शांति से आनंद से जीवन व्यतीत करें ।
चेतन के घर पर उसकी बच्ची की शादी थी । उन्होंने एक काम वाली बाई को काम पर रखा । सब बात खुलकर हुई लेकिन एनवक्त पर कामवाली बाई ने अपनी औकाद दिखा दी और काम पर नही आई । जब चेतन की पत्नी ने कामवाली बाई को फोन किया तो वो बोली मुझे डेंगू हो गया है इसलिए वह काम पर नहीं आ सकती ।
कामवाली बाई की बात पर विश्वास कर उन्होंने दूसरी व्यवस्था कर ली लेकिन बाद में पता चला कि उस कामवाली बाई को डेंगू नही हुआ था अपितु अधिक पैसे के लालच में वह दूसरों के यहां काम करने चली गई थी । उसकी इस हरकत से अब उसे कोई भी अपने यहां काम पर नही बुलाता है और सब यही कहते है कि वह धोखेबाज बाई है ।
अतः जीवन में झूठ से बचकर रहें और ऐसे लोगों से सावधान रहें । झूठ बोलकर आप कोई नेक कार्य नहीं कर रहें है अपितु अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं । अतः सादगी के साथ जीवन जीना सीखे और कभी भी जीवन में झूठ का सराहा न ले ।
कौन बनेगा करोडपति मे एक नौ वर्षीय नन्हें बालक अरूणोदय ने अमिताभ बच्चन को जिस सरलता , सहजता के साथ जवाब दिये वह काबिले तारीफ हैं नन्हे बच्चे ने जिस तरह से सूझबूझ के साथ व शालीनता के साथ खेल खेल कर न केवल बारह लाख पच्चास हजार रूपए की रकम ही जीती हैं अपितु अपने हुनर के जरिये अमिताभ बच्चन और देश व दुनियां की जनता का दिल भी जीत लिया ।
अरूणोदय ने जिस तरह से खेल खेला और सवालों के जवाब दिये वह वास्तव में एक अद् भूत खेल था जिसने सभी को हंसा – हंसा कर लोटपोट कर दिया वही दूसरी ओर अरुणोदय ने भी खेल का भरपूर आनंद लिया और अपनी बात कहने का कोई मौका नहीं छोडा । यहीं जीवन जीने का असली आनंद है और जीने की उतम कला है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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