सम्पादक के नाम पत्र : बंट रही हैं मुफ्त की रेवड़ियां

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
समाज में एक नई स्कीम आरम्भ हुई है जो अपने लोगों को मुफ्त की रेवड़ियां बांट कर आयोजन की इतिश्री की जा रहीं हैं और समाचार पत्रों में अपनी फ़ोटो छपवा कर वाह वाह लूटी गई। समाचारों में भी वक्ताओं के विचारों को गौण रखकर मात्र पुरस्कार विजेताओं के ही फोटों छपवाएं गये। मजे की बात यह रही कि फ़ोटो खिंचवाने का लोभ बच्चों से अधिक उनके परिजनों में देखा गया और संयोजक महोदय बड़े आराम से यह सब देख रहे थे उन्होंने किसी भी अभिभावक को फ़ोटो खिंचवाने से नहीं रोका। सम्मान प्रतिभागियों का था न कि उनके अभिभावकों का।
हाल ही में 12 जनवरी 2025 ( रविवार को ) को जोधपुर में एक संस्था द्वारा स्वामी विवेकानंद जी की जयंती मनाई गई। इस समारोह के अन्तर्गत बच्चों से निबंध प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की गई। बच्चों ने घर से लिखकर प्रविष्ठियां जमा करा दी। वहीं 12 जनवरी को करीबन 10 – 12 वक्ताओं ने मंच पर से अपने अपने विचार स्वामी विवेकानंद जी के संबंध में व्यक्त किये। लेकिन संयोजक महोदय ने वक्ताओं की अनदेखी की और एक भी वक्ता को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट नहीं किया जबकि सभी निबंध लेखन वालें प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
वक्ताओं में एक भी युवा नहीं था। जो भी निबंध प्रतियोगिता में शामिल किये गये थे उन सभी बच्चों को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर संस्था के संयोजक ने यह साबित कर दिया कि समाज के मिलने वालों को रेवड़ियां बांट कर उन्होंने समाज में वाह वाह लूटी हैं। वहीं दूसरी ओर वक्ताओं की उपेक्षा हुई। जिन्हें जनता-जनार्दन सुनने आई उन्हें प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह न देना वक्ताओं का सरे आम अपमान करना ही कहा जा सकता है।
यह सोलह आना सत्य है कि आयोजन शानदार हुआ व श्रोताओं की संख्या भी आयोजनकर्ताओं की निगाह में आशा से भी अधिक थी फिर वक्ताओं की अनदेखी क्यों की गई। निबंध तो बच्चों ने गूगल, किताबों व परिवार वालों की मदद से लिखकर जमा कराए थे। जबकि हकीकत में निबंध आयोजन स्थल पर लिखवाते तो पोल खुल जाती कि एक भी बच्चा स्वयं सही ढंग से लिखने वाला नहीं था। भला ऐसी लोकप्रियता हासिल करने व आयोजन करने का क्या औचित्य है?
Nice Article