पहाड़ों में ग्रामीण खेलों व खिलाड़ियों को बढ़ावा देना जरूरी

ओम प्रकाश उनियाल
खेल कोई-सा क्यों न हो शरीर को चुस्त रखने व शारीरिक विकास के लिए अहम माने जाते हैं। हर खेल का अपना-अपना महत्व अलग-अलग है। किस खेल में किसकी रुचि है यह भी सबकी अपनी-अपनी मर्जी एवं संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। भारत सरकार ने खेलों एवं खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए ‘खेलो इण्डिया’ की शुरुआत भी की थी।
शहरों में संसाधन होने के कारण खेल गतिविधियां सक्रिय रहती हैं। लेकिन जहां संसाधनों की कमी हो या उपलब्ध ही न हो तो वहां किसी न किसी तरह खेलों के प्रति रुचि रखना बहुत बड़ी बात होती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भी यही स्थिति है। कहीं स्टेडियम नहीं हैं तो कहीं खेल-प्रशिक्षक। जहां नाम के स्टेडियम हैं भी वे अव्यवस्थित हालत में हैं।
विद्यालय व विकास खंड तथा न्याय पंचायत व स्तर पर हालांकि खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया तो जाता है, खिलाड़ी भाग भी लेते हैं मगर उनमें वह क्षमता व दक्षता नहीं होती जो प्रशिक्षित खिलाड़ी में होती है। ऐसा नहीं कि पहाड़ के खिलाड़ी नाम नहीं कमा रहे। लेकिन जो नाम कमा रहे हैं ज्यादातर शहरों में ही रहते हैं। पहाड़ की खेल-प्रतिभाएं तो संसाधनों के अभाव में दबकर रह जाती हैं। दो-चार को छोड़कर।
पहाड़ों में कभी ग्रामीण खेलों का काफी महत्व था। लोग रुचि भी रखते थे। आज क्रिकेट जैसा प्रसिद्ध खेल बच्चे-बच्चे की जुबान पर छाया रहता है। एक समय था जब पहाड़ों में ‘हिंगोड़’ खेली जाती थी। यह खेल हॉकी की तरह खेला जाता था। ग्राउंड किसी बड़े खेत को बनाया जाता था। वह भी तब जब उसमें फसल कट गयी हो।
कपड़े की गेंद बनायी जाती थी। ‘पयां’ के पेड़ के टहनी की हिंगोड़ बनायी जाती थी। टहनी भी ऐसी जो आगे से थोड़ी मुड़ी हुई हो हॉकी की तरह। खेत के बीच में छोटा गड्ढा होता था जिसमें गेंद डालने पर गोल होता था। दो टीम के खिलाड़ी इस खेल को खेलते थे। ‘चौपड़’ जैसा खेल इनडोर गेम होता था। जिसकी जगह अब लूडो ले चुका है।
चौपड़ में चार खिलाड़ी होते थे। लकड़ी की गोटियां और पांसा। रस्साकसी, खो-खो, कब्बडी, बॉलीबाल, फुटबॉल, गुल्ली-डंडा, बटि, इच्ची-दुच्ची, तीरंदाजी, बाघ-बकरी आदि। इनमें से कुछ तो बिल्कुल ही खत्म हो चुके हैं, कुछ कहीं-कहीं खेले भी जाते हैं।
पहाड़ों में खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें उचित प्रशिक्षण देने के साथ-साथ अन्य तमाम जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध करानी होंगी। केवल प्रतियोगिताएं कराने से ही खिलाड़ियों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। यहां जो भी सरकार बनी उसने कभी सुदृढ़ खेल-नीति की तरफ ध्यान नहीं दिया।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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