देवभूमि उत्तराखंड में उत्तरैणी पर्व पर बनाये जाते हैं घुघुते
परंपरा संस्कृति की मिठास को संजोए हुए हैं घुघुते

देवभूमि उत्तराखंड में उत्तरैणी पर्व पर बनाये जाते हैं घुघुते, मिठास समेटे घुघुते तैयार हो जाते हैं। उत्तरैणी पर्व पर तैयार घुघुते काफी लम्बे समय तक खाये जाते हैं विशेष रूप से तैयार घुघुते शीघ्र खराब भी नहीं होते हैं। अपनी संस्कृति परंपराओं की मिठास को समेटे घुघुते दूर दूर तक अपनी मिठास पहुंचाते हैं। #भुवन बिष्ट, रानीखेत, उत्तराखंड
रानीखेत। हमारी भारत भूमि सदैव ही अपनी एकता अखण्डता के लिए विश्वविख्यात है वहीं विविधता में सदैव एकता की झलक भी यहाँ दिखाई देती है। देवभूमि उत्तराखण्ड को प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है वहीं देवभूमि आस्था परंपरा एंव त्यौहारों के लिए भी विश्वविख्यात है। देवभूमि में मकर संक्रांति,उत्तरैणी पर्व के रूप में धूमधाम से मनाई जाती है। उत्तरैणी पर घुघुते बनाने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी अपने उसी स्वरूप में विद्यमान है।
देवभूमि उत्तराखंड में उत्तरैणी पर्व पर बनाये जाने वाले घुघुते अपनी परंपरा संस्कृति की मिठास के लिए विश्व विख्यात हैं। घुघुते तैयार करने की लिए भी विशेष प्रकार की तैयारी की जाती है। सर्वप्रथम इसके लिए पानी में गुड़ मिलाकर इसे उबाला जाता है जिसे स्थानीय भाषा में गुड़ का पाग भी कहा जाता है। गुड़ को छोटे छोटे टुकड़ों मे तोड़कर फिर एक बरतन में गुड़ और पानी डाल कर गुड़ को मध्यम आंच पर लगातार चलाते हुए गुड़ गलने तक पकाया जाता है।
इस गुड़ मिश्रित पानी का उपयोग आटा गूंथने में किया जाता है और इसका योगदान घुघुतों में मिठास के लिए विशेषकर रहता है। अब गेहूँ का आटा, सूजी, सौंफ आदि मिलाकर गुड़ मिश्रित पानी जिसे गुड़ का पाग भी कहा जाता है इससे आटा अच्छी तरह से गूंथा जाता है है जिससे कि घुघुते बनाते समय आटा फटे नहीं अपितु मुलायम रूप से घुघुते तैयार किये जा सके। अब आटे की छोटी लोई बनाकर इसे लम्बा रोल करके इसे एक सिरे से दूसरे सिरे तक मिलाकर आगे के सिरों को दो तीन बार घुमाया जाता है और अपने में परंपराओं संस्कृति को समेटे घुघुते तैयार किये जाते हैं।
अब इन्हें तलने की बारी आती है इसके लिए चासनी में तेल को गर्म किया जाता है और मध्यम आंच में इन्हें बारी बारी पकाया जाता है। मिठास समेटे घुघुते तैयार हो जाते हैं। उत्तरैणी पर्व पर तैयार घुघुते काफी लम्बे समय तक खाये जाते हैं विशेष रूप से तैयार घुघुते शीघ्र खराब भी नहीं होते हैं। अपनी संस्कृति परंपराओं की मिठास को समेटे घुघुते दूर दूर तक अपनी मिठास पहुंचाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड के कुमाँऊ में इस पर्व पर बच्चे बड़ो का आशीर्वाद लेते हैं बच्चे घुघुतों की माला पहनकर कौवों को भी बुलाते हैं। देवभूमि में मकर संक्रांति पर बनने वाले घुघुते अपनी परंपराओं संस्कृति को समेटे मिठास के लिए प्रसिद्ध हैं।
परंपरा संस्कृति की मिठास को संजोए हुए हैं घुघुते
देवभूमि में मकर संक्रांति,उत्तरैणी पर्व के रूप में धूमधाम से मनाई जाती है। उत्तरैणी पर घुघुते बनाने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी अपने उसी स्वरूप में विद्यमान है। देवभूमि उत्तराखंड में उत्तरैणी पर्व पर बनाये जाने वाले घुघुते अपनी परंपरा संस्कृति की मिठास के लिए विश्व विख्यात हैं। अपनी संस्कृति परंपराओं की मिठास को समेटे घुघुते दूर दूर तक अपनी मिठास पहुंचाते हैं।
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