प्रकृति को संजोने का संदेश देता लोकपर्व ‘हरेला’
ओम प्रकाश उनियाल
उत्तराखंड में ‘हरेला’ पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। प्रकृति के प्रति प्रेम एवं पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन का द्योतक माना जाता है ‘हरेला’ पर्व। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इस पर्व को परंपरागत रूप से मनाया जाता है। कुमाऊं में इस पर्व को अधिक मनाया जाता है। हर साल सावन माह में मनाए जाने वाले इस लोकपर्व की तैयारी नौ दिन पहले से की जाती है।
सात प्रकार के अन्न के बीज किसी बर्तन या टोकरी में बोए जाते हैं तथा उगने पर दसवें दिन काटा जाता है। जो कि ‘हरेला’ नाम से जाना जाता है। विधि-विधान से पूजा कर घरों की चौखटों के दोनों ऊपरी किनारों पर गाय के गोबर के साथ हरेला जड़ सहित लगाया जाता है। साथ ही सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। हरेला पर्व धरा को हरा-भरा रखने का संदेश देता है। ताकि पहाड़ भी अपनी खूबसूरती से वंचित न रहें।
अब तो राज्य के मैदानी इलाकों में भी यह पर्व मनाया जाता है। सरकार भी इस लोकपर्व को महत्व देती है। मैदानी इलाकों में अपने-अपने स्तर से खाली व बंजर स्थलों पर वृक्षारोपण करने के लिए प्रेरित किया जाता है। पर्व कोई-सा हो खुशियों की सौगात लाता है। लेकिन यक्ष प्रश्न तब खड़ा होता है जब वन, भू व खनन माफिया बेरहमी से हरियाली को नष्ट करते आ रहे हैं।
यहां तक कि विकास के नाम पर भी अनगिनत वृक्षों का दोहन किया जाता है। और तो और गर्मी के मौसम में शरारती तत्वों द्वारा वनों में आग लगाकर हरियाली को नष्ट कर दिया जाता है। इनके कुचक्र को ध्वस्त करने के लिए सबका साथ जरूरी है। जिससे प्रकृति को संजोकर रखने का संदेश देने वाले स्थानीय लोकपर्वों की गरिमा जस की तस बनी रहे।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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