***
साहित्य लहर

विरह की अग्नि

साहित्यकार भारमल गर्ग
पुलिस लाईन, जालोर (राजस्थान)

बिंदी माथे पे सजाकर कर लिया सोलह श्रृंगार ।
प्राणप्रिय आपकी राह में बिछाई पुष्प वह पगार ।।

शय्या पर भी चुनट पड़ी बोले सारी सारी रात ।
नींद भी नहीं आ रही जगन मिलन की बात ।।

विरह वेदना तन को जलाएं नहीं कोई उपचार ।
प्राणाधार के साथ में मेरे जीवन का हैं आधार ।।

मन की यह यन्तणा क्या बताऊं सजाना आज ।
ओष्ठ चंचल चल रहे , सारंगी बिखरे तय साज ।।

क्षीर – क्षीर की खीर भी बनाई आपकी अबला ।
राह चलते आज मिली थीं एक कुंवारी सबला ।।

कई पहर बीत गए तकती हूं प्रीत विहार के रास्ते ।
चीं चीं चूं चूं से पुकारती है चिड़िया चिड़ा के वास्ते ।।

पणघट पानी लेने गई सखियां मिली नदी के तट ।
मन की बातें अधरो से कर रहीं पीर तीर खटपट ।।

घर आंगन में बैठी बैठी चंदा को देखूं हास विलास ।
गायन वादन नृत्य करती रचती विरह में मधुमास ।।

गीत सुनाती भंवरे उड़ा आती हूं उस बगिया में आज ।
पिया आपकी याद में तड़प रही हूं रैन बसेरा में रात ।।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights