श्रद्धा और भक्ति

सुनील कुमार माथुर
आदर्श जीवन जीने के लिए जीवन में श्रद्धा व भक्ति दोनों होना जरूरी हैं । हमें परमात्मा की सेवा निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए । चूंकि भक्ति में ही शक्ति हैं । परमात्मा अपने भक्तों की मदद हेतु हर वक्त तैयार रहते हैं । वे कब व किस रूप में हमारी सहायता के लिए आते हैं यह हम अभी तक नहीं जान पायें है चूंकि हमारी भक्ति अभी तक इसे जानने लायक नहीं हुई हैं ।
परमात्मा कई बार स्वतः हमारी मदद के लिए आ जाते हैं भले ही हमने उनकी पूजा पाठ न की हो या कथा , भजन कीर्तन व सत्संग का स्मरण नहीं किया हो । इसका अर्थ यह नहीं है कि हम परमात्मा की भक्ति ही नहीं करे । भक्ति में ही शक्ति हैं और इसीलिए भक्ति का दिया हर वक्त जलते रहना चाहिए हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं तब हमें वक्त नहीं मिलता हैं कि हम ईश्वर की सेवा करे , उसकी भक्ति करें लेकिन परमात्मा जानते हैं कि यह व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए पूजा पाठ के लिए वक्त नहीं निकाल पाता हैं
परमात्मा भक्त की आधी अधूरी भक्ति से कभी भी संतुष्ट नहीं होते हैं । भक्ति हो तो पूरी निष्ठा के साथ हो और वह भी निस्वार्थ भाव से । तभी भक्ति का आनंद हैं । व्यक्ति जो नेक कार्य करता हैं और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाता हैं ईश्वर उसे ही भक्ति मानकर अपने भक्तों का कल्याण कर देते हैं चूंकि वे तो अपने भक्तों के भाव के भूखें हैं । अतः वे ऐसे भक्तों को प्रसन्न कर देते हैं । दर्शन भी दे देते हैं ।
तभी तो किसी महापुरुष ने सही कहा हैं कि हंसते हुए चेहरे को देखकर यह मत सोचना कि उस व्यक्ति को कोई गम नहीं है , बल्कि यह सोचना कि उसमें सहन करने की आधिक ताकत है । कोई भी परेशानी वास्तव में उतनी बडी नहीं होती हैं जितनी हम बार – बार सोचकर बना देते हैं । अतः जीवन में कभी भी अंहकार न करें । अंहकार से सदा दूर रहें ।
हमेशा दूसरो की भी बात पूरी सुने – समझें और फिर अपनी राय दे । कभी भी किसी पर न तो अपनी राय थोपे और न ही बिना मांगे राय दे । एक – दूसरे की भावना की कद्र करें । उस परमपिता परमेश्वर पर विश्वास करें चूंकि वही हमारा पालनहार है । जीवन की सच्चाई को समझें चूंकि मृत्यु तो एक दिन आनी निश्चित है तो फिर उससे इतना क्यों घबराना आया हैं तो वह एक दिन जरूर जायेगा फिर काहे का डर ?
घुट – घुट कर जीने के बजाय तो हंसते मुस्कुराते जीवन व्यतीत करना चाहिए । हमेशा नेकी के रास्ते पर चलें । सद् गुणों को अपनाइए और भक्ति का दिया जलाएं रखें । जब भी भोजन करे तब उसे ईश्वर का प्रसाद समझ कर ग्रहण करे । भोजन में किसी भी प्रकार की मिनमेख ( कमी ) न निकालें जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास रखता हैं उसका हर कार्य सफल होता हैं । चूंकि ईश्वर की निस्वार्थ भाव की भक्ति में ही शक्ति हैं ।
प्रभु अपने हर भक्त का दुःख व संकट देर करते हैं । भले ही वे स्वंय न आये लेकिन किसी न किसी को सहायता करने के लिए अवश्य ही भेजते हैं । अगर वे स्वंय भी आ जाये तो हम उन्हें आपनी इन कोरी आंखों से नहीं पहचान सकते और उनके जाने के बाद ही हमें इस बात का अहसास होता हैं कि ईश्वर हमारी मदद के लिए आये थे और मदद करके चले गये लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पायें । ईश्वर को पहचानने के लिए हमारी भक्ति निस्वार्थ भाव की होनी चाहिए ।जिसमें अंहकार का भाव तनिक सा भी न हो।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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