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साहित्य लहर

चेहरे पर मुखौटा

चेहरे पर मुखौटा, अब ख़ुदा के रहम से यकीं उठ गया, बेरहम भी उसी के बनाए हुए।। यह अँधेरा बहुत ही ख़तरनाक है, साथ चलिए मशालें जलाए हुए।। ख़्याल आए यूँ कविता ग़ज़ल हो गई लफ्ज़ अश्कों में मेरे नहाए हुए।। #कविता नन्दिनी, सिविल लाइंस, आज़मगढ़, उ.प्र.

चेहरे पर मुखौटा लगाए हुए
हर शिकारी नज़र हैं गड़ाए हुए।।

राग दरबार का गा रहे हैं सभी
जो गरीबों का हक़ हैं दबाए हुए।।

वायदे पर यकीं करके देखा यहाँ
ख़्वाब टूटे हमारे सजाए हुए।।

है न उम्मीद कोई न है आसरा
हम सगे, दोस्तों के सताए हुए।।

अब ख़ुदा के रहम से यकीं उठ गया
बेरहम भी उसी के बनाए हुए।।

यह अँधेरा बहुत ही ख़तरनाक है
साथ चलिए मशालें जलाए हुए।।

ख़्याल आए यूँ कविता ग़ज़ल हो गई
लफ्ज़ अश्कों में मेरे नहाए हुए।।


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चेहरे पर मुखौटा, अब ख़ुदा के रहम से यकीं उठ गया, बेरहम भी उसी के बनाए हुए।। यह अँधेरा बहुत ही ख़तरनाक है, साथ चलिए मशालें जलाए हुए।। ख़्याल आए यूँ कविता ग़ज़ल हो गई लफ्ज़ अश्कों में मेरे नहाए हुए।। #कविता नन्दिनी, सिविल लाइंस, आज़मगढ़, उ.प्र.

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