कर्नाटक में चुनाव हुये शुरू और मुद्दे कर दिये गायब
कर्नाटक में चुनाव हुये शुरू और मुद्दे कर दिये गायब, हम आपको बता दें कि मराठी भाषी बहुल क्षेत्र खानापुर उन 264 गांवों में से एक है जिन्हें महाजन आयोग ने 1967 में पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र को देने की सिफारिश की थी। इसमें निप्पानी विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है। ✍🏻 गौतम मोरारका
कर्नाटक में 10 मई को होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार जोरों पर है। इस बीच वह सब मुद्दे गायब होते दिख रहे हैं जोकि एक महीने पहले सुर्खियों में थे। मसलन हिजाब, सीमा विवाद आदि मुद्दे कर्नाटक में चुनाव प्रचार से गायब हो चुके हैं। खानापुर और अन्य सीमावर्ती गांवों की बात करें तो यहां कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद चुनावी मुद्दा नहीं है। देखा जाये तो उत्तरी कर्नाटक के बेलगावी जिले में पिछले सात दशक से भाषीय आधार पर सीमा विवाद में फंसा खानापुर विधानसभा क्षेत्र विकास के लिए तरस रहा है और लोग इसके जल्द समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भरोसा जता रहे हैं।
हम आपको बता दें कि मराठी भाषी बहुल क्षेत्र खानापुर उन 264 गांवों में से एक है जिन्हें महाजन आयोग ने 1967 में पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र को देने की सिफारिश की थी। इसमें निप्पानी विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है। दुखद रूप से, भाषीय बहुल गांवों को स्थानांतरित करने को लेकर कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के बीच विवाद धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा बन गया। कर्नाटक में 1960 में विधानसभा चुनाव शुरू होने के बाद से ही खानापुर विधानसभा सीट पर ज्यादातर एमईएस की जीत हुई है लेकिन अभी तक कोई भी उम्मीदवार पुन: निर्वाचित नहीं हुआ। भाजपा ने 2008 में पहली बार यह सीट जीती थी जबकि कांग्रेस ने 2018 में पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी।
राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 और 1967 के महाजन आयोग की सिफारिशों को लागू न करने को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका उच्चतम न्यायालय में लंबित है जिसके कारण खानापुर की अनदेखी की गयी और वहां बस सुविधाएं तथा वन्य क्षेत्रों में स्कूल, उचित सड़कें, पुल तथा नहर और उच्च शिक्षण संस्थान समेत बुनियादी सुविधाओं की कमी है। न केवल खानापुर बल्कि विवाद में फंसे कई गांवों के निवासी इसके जल्द समाधान का इंतजार कर रहे हैं ताकि विकास कार्यों में और विलंब न हो। हम आपको बता दें कि महाजन आयोग ने 1967 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि 264 गांवों का महाराष्ट्र में विलय किया जाए तथा बेलगावी और 247 गांव कर्नाटक में ही बने रहें। हालांकि, महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए इसे पक्षपातपूर्ण और अतार्किक बताया था जबकि कर्नाटक ने इसका स्वागत किया था।
वहीं कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में प्रचार अभियान में हिजाब अब बड़ा मुद्दा नहीं है। देखा जाये तो पिछले साल राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाया रहा शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के ‘हिजाब’ पहनने का विवादास्पद मुद्दा कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार में जोर पकड़ता नहीं दिख रहा। उडुपी में एक गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनकर आने पर पाबंदी लगाये जाने के बाद इस मुद्दे ने तूल पकड़ ली थी। हम आपको बता दें कि राज्य में भाजपा की सरकार ने विवाद के तूल पकड़ने के बाद शैक्षणिक परिसरों के अंदर हिजाब पहन कर आने पर पिछले साल एक आदेश के तहत प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार ने कहा था कि समानता, अखंडता और कानून व्यवस्था को प्रभावित करने वाली किसी भी पोशाक को अनुमति नहीं दी जाएगी। विद्यार्थियों को प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों और स्कूलों के लिए निर्धारित पोशाक ही पहनने का निर्देश दिया गया था।
राज्य में हिजाब पहनी कई छात्राओं को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश करने देने से इनकार किये जाने के बाद यह आदेश जारी किया गया था। इस कदम के बाद देशभर में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन हुए थे। कुछ मुस्लिम छात्राओं के अदालत का रुख करने के बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकार के आदेश को कायम रखा था। इसके बाद, फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने अक्टूबर में एक विभाजित फैसला सुनाया। विषय की सुनवाई आगे एक वृहद पीठ द्वारा की जाएगी। हिजाब विवाद के दौरान भाजपा के ‘पोस्टर ब्वॉय’ रहे यशपाल सुवर्णा अब उडुपी विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं। हम आपको बता दें कि जब यह विवाद उत्पन्न हुआ था उस वक्त वह उडुपी गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज फॉर वुमन की विकास समिति के उपाध्यक्ष थे। मौजूदा विधायक रघुपति भट की जगह इस सीट से पार्टी ने सुवर्णा को टिकट दिया है, जो मोगावीरा (मछुआरा समुदाय) के नेता हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है।
हालांकि, हिजाब मुद्दे को चुनाव प्रचार के दौरान जोरशोर से नहीं उठाया जा रहा है और भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। यदि कोई पार्टी गुपचुप तरीके से हिजाब मुद्दे को चुनाव प्रचार का विषय बना रही है तो वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) है, जो प्रतिबंधित पीएफआई की राजनीतिक इकाई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वे इस मुद्दे के असल लाभार्थी हैं, जिसके जरिये वे मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को उद्वेलित करना चाहते हैं। हम आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिले में 13 सीट में 12 पर भाजपा को जीत मिली थी।
दूसरी ओर किसानों की बात करें तो आपको बता दें कि भारत में सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली किशमिश का उत्पादन उत्तरी कर्नाटक के विजयपुरा जिले में होता है, इसके बावजूद यहां के किसानों को विपणन संबंधी मूलभूत ढांचा नहीं होने के कारण इनके बेहतर दाम नहीं मिल रहे और वे चाहते हैं कि इस बार के विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आने वाली सरकार उनकी समस्याओं का समाधान करे। हम आपको बता दें कि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद 2014 में बीजापुर का नाम बदलकर विजयपुरा कर दिया गया था। विजयपुरा जिले में बाबलेश्वर और विजयपुरा शहर सहित आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। वर्तमान विधानसभा में यहां राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगभग समान रूप से बंटा हुआ है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के इस क्षेत्र से तीन-तीन विधायक हैं जबकि जनता दल सेक्युलर (जद-एस) दो क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है।
कुछ साल पहले तक, इस कृषि प्रधान जिले के सूखाग्रस्त इलाके में किसानों की मुख्य समस्या सिंचाई थी, जो 2013 में कृष्णा बैराज से एक नहर निकाले जाने से दूर हो गई। उस समय बाबलेश्वर विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस विधायक एम बी पाटिल जल संसाधन मंत्री थे। अब जिले की अधिकतर कृषि भूमि में पानी पहुंच गया है और पिछले कुछ साल में अंगूर की पैदावार और इसकी खेती के क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है लेकिन इसने विपणन की नई समस्या पैदा कर दी है।
कई बार मांग किए जाने पर कुछ साल पहले विजयपुर शहर में किशमिश के लिए एक ऑनलाइन नीलामी मंडी खोली गई थी, लेकिन किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि एक ही भूखंड में उत्पादन के बावजूद एक खेप से दूसरी खेप में दरों में अत्यधिक अंतर था। दरअसल बिचौलियों को वस्तु एवं सेवा कर का भुगतान करना चाहिए, लेकिन वे किसानों से यह राशि ले रहे थे। इससे किसान हतोत्साहित हुए और महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में बिचौलियों के जरिए किशमिश बेचने पर मजबूर हैं।
कर्नाटक अंगूर उत्पादक संघ के अध्यक्ष केएच मामदा रेड्डी ने बताया कि सिंचाई ने विजयपुरा जिले में अंगूर की खेती के क्षेत्र को 40,000 एकड़ से बढ़ाकर 75,000 एकड़ करने में मदद की है। उन्होंने कहा कि विजयपुरा में सबसे अच्छी गुणवत्ता की किशमिश पैदा होती है, इसके बावजूद किसानों को बेहतर मूल्य नहीं मिल रहा। भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव प्रचार में लगे हैं, ऐसे में इस क्षेत्र के अंगूर उत्पादक किसान बाबलेश्वर विधानसभा क्षेत्र के इट्टांगीहल गांव में स्वीकृत खाद्य उद्यान पर अपनी उम्मीदें लगाए हुए हैं और मांग कर रहे हैं कि सत्ता में आने वाले नेता परियोजना को जल्द पूरा करना सुनिश्चित करें।
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