कांग्रेस संगठन को कुशल नेतृत्व की जरूरत

ओम प्रकाश उनियाल

कांग्रेस की डगमगाई स्थिति से पूरा देश परिचित है। बुरे समय के दौर से गुजर रही है कांग्रेस। हाशिए पर है दल। कारण, कुशल नेतृत्व की कमी। जब तक कांग्रेस की कमान अनुभवी हाथों में रही तब तक एकजुटता भी बनी रही और देश में छायी रही। सशक्त संगठन के रूप में जाना जाता रहा संगठन। दल की कमान जब सोनिया गांधी के हाथों में आयी तो भी अपेक्षाकृत परिणाम देखने को नहीं मिला। जबकि सोनिया गांधी लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहीं। बाद में राहुल गांधी बने तो वे भी ऐसा कुछ खास करिशमा नहीं दिखा पाए जिससे संगठन आगे बढ़ता। उनके नेतृत्व का परिणाम 2019 के लोकसभा के चुनाव में देखने को मिला।

केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनी तबसे कांग्रेस का ग्राफ नीचे ही गिरता नजर आ रहा है। हर तरफ मोदी का डंका बजता आ रहा है। विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस केवल नाममात्र की उपस्थिति दर्ज कराए हुई है। बेदम विपक्ष। स्थिति यह है कि कांग्रेस दो राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश तक सिमटी हुई है। छतीसगढ़, राजस्थान और पु्डुचेरी। जून माह में राजस्थान में ‘चिंतन-शिविर’ का आयोजन किया था। जिसमें संगठन को कैसे मजबूत व सक्रिय बनाया जाए व कार्यकर्ताओं को जोड़ने जैसे कई बिंदुओं पर मंथन किया गया था। मगर उसके बाद भी वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आयी।

अब नए अध्यक्ष का चुनाव होना है। प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। राहुल गांधी समर्थित धड़ा उन्हें अध्यक्ष पद पर विराजमान देखना चाहता है। जबकि, अन्य अनुभवी व कुशल हाथों में संगठन की कमान सौंपना चाहते हैं। वैसे तो कोई भी जिम्मेदारी अपने सिर पर नहीं लेना चाह रहा है। राहुल गांधी के सिर पर ही ठीकरा फोड़ने की कोशिश की जा रही है। इससे राहुल गांधी खुद भी कतरा रहे हैं। हालांकि, 20 सितंबर को तस्वीर साफ हो जाएगी।

2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। जिसके लिए संगठन को अभी से ठोस रणनीति बनानी होगी। इससे पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये राज्य तेलंगाना, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मेघालय, मध्यप्रदेश, राजस्थान व छतीसगढ़ हैं। कांग्रेस पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप भाजपा लगाती रही है। लेकिन, यह भी सच्चाई है कि संगठन में पुराने व वरिष्ठ नेताओं को खास महत्व न दिए जाने से संगठन के भीतर चक्रव्यूह रचता रहा उससे संगठन कमजोर एवं निष्क्रिय बनता रहा।

संगठन से लंबे अरसे से जु़ड़े वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से ऐसे समय में अलग होना जब कांग्रेस का कोई खेवनहार न हो कई सवाल खड़े कर रहा है। जाहिर है, भितरघात से संगठन अछूता नहीं है। अब कांग्रेस को ‘भारत जोड़ो’ यात्रा निकालने के बजाय कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालने की जरूरत है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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