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आपके विचार

जीवन की उलझन

जीवन की उलझन, अपने आप पर काबू रखें, नियंत्रण रखें, क्रोध न करें, किसी के बहकावे में न आये अन्यथा बनी बनाई बात बिगड जायेगी। कहने का तात्पर्य यह हैं कि नाव किनारे आकर भी डूब जायेगी। जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से…

जीवन में उलझनों की कोई कमी नहीं हैं । उलझन देखकर घबराइये नही़ अपितु प्यार और स्नेह से उन्हें सुलझाइए । जैसे डोर की उलझन को बिना तोडे और गांठ लगायें सुलझा लेते है ठीक उसी प्रकार जीवन की उलझन को प्यार और स्नेह से सुलझाइए ।‌ रिश्तों में गांठ न पडने दें । वही दूसरी ओर शंका का समाधान मिल बैठकर सुलझाया जाए न कि अंहकार को बीच में लाकर उलझन को और उलझा ले।

अपने आप पर काबू रखें, नियंत्रण रखें, क्रोध न करें, किसी के बहकावे में न आये अन्यथा बनी बनाई बात बिगड जायेगी। कहने का तात्पर्य यह हैं कि नाव किनारे आकर भी डूब जायेगी। अतः संयम , धैर्य , सहनशीलता से काम लीजिए । अपने मन और बुध्दि पर काबू रखिए । हर बात में शंका न करे । किसी से कुछ पूछ लेना बुरा नहीं हैं । लेकिन बिना पूछे अपने मन में अनाप शनाप सोच कर बेकार की गलत धारणा बना लेना उचित नहीं हैं।

इससे तो परेशानियां ही बढती हैं और फिर वे ऐसे उलझ जाती है कि उन्हें सुलझाना भी कठिन हो जाता है । अतः विश्वास रखें और शंका के बीज को पनपने ही न दे । शंका की आशंका होने से पहले ही उसे मिटा दीजिये । जहां विश्वास होता है वहां शंका हो ही नहीं सकती ।‌ शंका सदा जीवन का नाश ही करती हैं प्रगति के मार्ग में रोडे ही डालती है।

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जो जीवन की उलझनों को सुलझा लेता है । वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी ठोकरें नहीं खाता हैं । कभी भी परेशानी में नहीं पडता है । चूंकि प्यार और स्नेह की वर्षा उस पर हर वक्त बरसती रहती है ।‌ इतना ही नहीं वह व्यवहारिक ज्ञान और अनुभवों से लबालब भरा होता है । ऐसे व्यक्तियों के संग हर वक्त ईश्वर रहता हैं और जहां ईश्वर का वास होता है , वहां कैसी उलझन।

जैसे झाडू निकाल कर हम घर का कूडा करकट बाहर फैंक देते हैं और घर को चमका देते है ठीक उसी प्रकार शिक्षा रूपी चाबी से हम अपने मन और मस्तिष्क का ध्दार खोलकर अज्ञानता रुपी कचरे को साफ कर बाहर फैंक सकते हैं । बस जरुरत है अंहकार का त्याग कर हम सच्चाई के मार्ग पर चलें।


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जीवन की उलझन, अपने आप पर काबू रखें, नियंत्रण रखें, क्रोध न करें, किसी के बहकावे में न आये अन्यथा बनी बनाई बात बिगड जायेगी। कहने का तात्पर्य यह हैं कि नाव किनारे आकर भी डूब जायेगी। जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से...

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