कविता : नव दीप जले
कविता : नव दीप जले, बहे पावन सरिता का जल, हिमशिखरों पर लालिमा छायी। बनकर ओस की बूँदें छोटी, जल मोती यह मन को भायी ।। लगे हैं कलियां भी अब खिलने, धरा में महक रहे पुष्प सारे। रानीखेत (उत्तराखण्ड) से भुवन बिष्ट की कलम से…
नव दीप जले हर मन में, अब तो भोर हुई हुआ उजियारा।
लगे विहग धरा में चहकने, रवि किरणों से जग सजे सारा।।
बहे पावन सरिता का जल, हिमशिखरों पर लालिमा छायी।
बनकर ओस की बूँदें छोटी, जल मोती यह मन को भायी ।।
लगे हैं कलियां भी अब खिलने, धरा में महक रहे पुष्प सारे।
भानू की अब चमक देखकर, छिप गये आसमां में अब तारे।।
सजाया जग निर्माता ने, नभ जल थल सुंदर प्यारा ।
नव दीप जले हर मन में, अब तो भोर हुई हुआ उजियारा।
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