बचपन के दिन
सुनील कुमार
बचपन के दिन थे कितने सुंदर
रातें भी कितनी सुहानी थीं
दादा-दादी के संग जब
परियों की कहानी थी।
न तो था अपना घर बड़ा
न कोई घोड़ा-गाड़ी थी
दादा-दादी के कंधों पर
होती अपनी सवारी थी।
पूरी होती थी मेरी हर इक चाहत
हसरतें कोई न रहती बाकी थीं
लाख खता करता था फिर भी
दादी सीने से मुझे लगाती थी।
घर-आंगन में भर जाती थीं कितनी खुशियां
दादी जब स्नेह के मोती लुटाती थी।
त्योहारों पर मिलजुल कर हम
कितना मौज मनाते थे
दादा-दादी हमको खिलौने नए दिलाते थे।
पर अब वो दिन वो रात कहां
बचपन वाली वो बात कहां
जब परियों के सपनों में
मैं खोया रहता था
दादी के सीने से लग
बिन तकिए सोया रहता था।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमारलेखक एवं कविAddress »ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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