कविता : एक पतंग कट कर गिरी…

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राजेश ध्यानी सागर

एक पतंग
कट कर गिरी
थोड़ा सा
मांजा लिये
कई हाथ दौड़े
पाने को
छींना झपटी ऐसी
उस पर ,
दोनो हड्डी
छिटक गयी।

लटका माजां
बोल पड़ा
वाह पतगंबाज
तेरा भी जबाव नही
चरखी तेरी
उगंली तेरी
खूब हवा में
लहराया।

कभी खींच से
कभी ढ़ील से
अपने मन को
बहलाया।
मन भरा तो
सौतन संग
पेंच लगाने
भिडा दिया।

चरखी तेरे
हाथ रहीं
उसे ज़मी पर
गिरा दिया।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजेश ध्यानी “सागर”

वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखक

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144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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