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हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक, साहित्य पत्रकारिता का मायका

हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक, साहित्य पत्रकारिता का मायका… भविष्य में भी हिंदी में जानकारी प्राप्त करने की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि बहुत से लोग अभी भी हिंदी में संवाद और समाचारों का उपभोग करते हैं। डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता को नए और प्रभावी तरीकों से विकसित होने की आवश्यकता है, ताकि यह न केवल समकालीन पाठकों तक पहुँचे बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी प्रासंगिक बनी रहे। #अंकित तिवारी

हिंदी भाषा ने हमेशा से हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसे किसी समाज की संस्कृति और सभ्यता का विकास भाषा के माध्यम से होता है, वैसे ही हिंदी भी भारतीय समाज की सांस्कृतिक जड़ों को मज़बूत और संरक्षित करने का माध्यम बनी हुई है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, यह हमारे जीवन के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम भी है।

हिंदी और नैतिकता का प्रसार – आज के युवाओं में अक्सर व्यक्तिगत नैतिकता होती है, लेकिन सामाजिक नैतिक दिशा-निर्देशों की कमी दिखाई देती है। ऐसे में, हिंदी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यह भाषा न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि नैतिकता और मूल्यों को भी समाज में स्थापित करती है। हिंदी के माध्यम से हम समाज को नैतिक दिशा दे सकते हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं का संरक्षण हो सके।

हिंदी की विशिष्टता – हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा ठीक उसी प्रकार लिखी जाती है, जैसे बोली जाती है। इसके अलावा, हिंदी ने विभिन्न भाषाओं के शब्दों और प्रभावों को आत्मसात किया है, जिससे यह समृद्ध और अनुकूलनीय भाषा बन गई है। इसने न केवल विभिन्न भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया है, बल्कि उन्हें एक साथ विकसित होने का अवसर भी दिया है। हिंदी की स्पष्टता और संवाद क्षमता समाज को मार्गदर्शन देने और ज्ञान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हिंदी साहित्य और पत्रकारिता का संबंध – हिंदी साहित्य और पत्रकारिता का आपस में गहरा संबंध है। साहित्य को पत्रकारिता का आधार या ‘मायका’ कहना उचित होगा। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी के लेखकों और विचारकों ने पत्रकारिता को अपनी साहित्यिक सोच से प्रभावित किया था। आज भी हिंदी पत्रकारिता में साहित्य का योगदान बरकरार है, जो संचार के स्तर को उन्नत बनाए रखने के लिए आवश्यक है। हिंदी साहित्य ने पत्रकारिता को नई दिशा दी, और इसके साथ ही पत्रकारिता ने भी हिंदी साहित्य को व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचाया है।

डिजिटल युग में हिंदी का उदय – जिटल युग में हिंदी की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ी है। तकनीक के प्रसार और महामारी के दौरान डिजिटल माध्यमों का अधिक उपयोग होने से भाषा के उपभोग में बदलाव आया है। हिंदी पत्रकारिता में भी इस बदलाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। डिजिटल पत्रकारिता ने न केवल भाषा की पहुँच को बढ़ाया है, बल्कि इसे एक नए और बड़े वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर भी दिया है।



महामारी के दौरान हिंदी में डिजिटल सामग्री की मांग में वृद्धि हुई है, और यह प्रवृत्ति भविष्य में और बढ़ने की संभावना है। हिंदी का बढ़ता उपयोग अन्य भारतीय भाषाओं को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि उनके विकास को भी प्रोत्साहित करेगा। पत्रकारिता में विविध भाषाओं की मांग बढ़ रही है, जो एक भाषाई रूप से अधिक विविध भविष्य का संकेत है।



हिंदी पत्रकारिता का भविष्य – आज के समय में हिंदी पत्रकारिता को साहित्य के साथ अपने संबंध को बनाए रखने की आवश्यकता है। डिजिटल पत्रकारिता के बढ़ते प्रभाव के बावजूद, हिंदी की स्पष्टता और संवाद क्षमता बरकरार है। पत्रकारिता की भाषा में बदलाव आ रहा है, लेकिन यह बदलाव सकारात्मक है। डिजिटल पत्रकारिता भाषा विज्ञान और कला दोनों का समावेश करती है। लेखन एक कला है और इसे समझना एक विज्ञान है।



भविष्य में भी हिंदी में जानकारी प्राप्त करने की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि बहुत से लोग अभी भी हिंदी में संवाद और समाचारों का उपभोग करते हैं। डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता को नए और प्रभावी तरीकों से विकसित होने की आवश्यकता है, ताकि यह न केवल समकालीन पाठकों तक पहुँचे बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी प्रासंगिक बनी रहे।

निष्कर्ष – हिंदी भाषा की विशिष्टता और उसकी सांस्कृतिक महत्ता को समझते हुए, यह स्पष्ट है कि हिंदी न केवल साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से अपनी पहचान बनाए हुए है, बल्कि यह हमारे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी संरक्षित कर रही है। डिजिटल युग में भी हिंदी की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है, बल्कि इसके उपयोग में वृद्धि हुई है, जो इसे भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण बनाएगा।

पीजी कॉलेज कर्णप्रयाग में हिंदी दिवस के अवसर पर विचार गोष्ठी आयोजित

(लेखक अंकित तिवारी ,शोधार्थी, अधिवक्ता एवं पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि है !)


हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक, साहित्य पत्रकारिता का मायका... भविष्य में भी हिंदी में जानकारी प्राप्त करने की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि बहुत से लोग अभी भी हिंदी में संवाद और समाचारों का उपभोग करते हैं। डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता को नए और प्रभावी तरीकों से विकसित होने की आवश्यकता है, ताकि यह न केवल समकालीन पाठकों तक पहुँचे बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी प्रासंगिक बनी रहे। #अंकित तिवारी

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