जब पशु पक्षियों ने दिया ज्ञापन

जब पशु पक्षियों ने दिया ज्ञापन… वास्तव में इंसान इतना स्वार्थी हो गया कि अपने लाभ की खातिर उसने जंगल के जंगल उजाड दिये। अब आप ही बताइए कि आखिर ये पशु पक्षी जाये तो कहां जाये। अतः विकास के नाम पर जंगल काटना बंद कीजिए और पशु पक्षियों को वहां चैन से रहने दीजिए। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
रविवार का दिन था। मैं सवेरे सवेरे देवभूमि समाचार पत्र के रविवारीय परिशिष्ट के साथ चाय की चुस्कियां ले रहा था। तभी पशु पक्षियों का एक शिष्टमंडल मेरे यहां आ गया और जोर जोर से नारेबाजी करने लगे। मैं दौड़कर बाहर गया तो पशु पक्षियों का शिष्टमंडल देख कर मैं चौंक पड़ा। उसमें से कुछ पशु पक्षी बोले आप कैसे कलमकार है। विकास के नाम पर आम जनता और प्रशासन ने जंगल के जंगल साफ कर दिए।
हमारी पट्टा सुदा भूभि पर बहु मंजिली इमारते बना ली। चौडी चौड़ी सडके, पेट्रोल पंप, सरकारी भवन बना लिए। राजनीति में दखल रखने वाले लोगों ने अपने फार्म हाउस बना लिए। इस तरह पशु पक्षियों की भूमि पर अतिक्रमण कर उन्हें बेघर कर दिया गया और आप कलमकार होते हुए भी हमारे हक के लिए आवाज आज तक नहीं उठाई। अब आप ही बताइए कि हम कहां जाये।
अगर शहरों में जाये तो जनता वहां से भगा देती है और पशुओं को नगर निगम, पालिका के कर्मचारी पकड़ लेते है और खूंखार व खतरनाक जानवरों को वन विभाग वाले पकड कर ले जाते है और दूर ले जाकर छोड देते है। इस भीषण चिलचिलाती गर्मी और उमस में सभी पशु पक्षियों का बुरा हाल हो रहा है। विकास के नाम पर हरे भरे लहराते जंगलों को तो काट दिया, लेकिन आज तक पौधारोपण नहीं किया। कहने को तो हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हो मगर वह मात्र एक औपचारिकता भर रह जाता है।
समाचार पत्रों में फोटों छपवाने के लिए सवेरे पौधा रोपा जाता है और दोपहर में उसे गाय या बकरी खाकर इतिश्री कर लेती है। चूंकि गली, मौहल्ले, गांव, शहर व राष्ट्र को हरा भरा बनाने की किसी में भी दृढ इच्छा शक्ति नहीं है अन्यथा यह भारत वर्ष अब तक पुनः हरा भरा राष्ट्र व खुशहाल राष्ट्र हो गया होता। हर कोई मात्र औपचारिकता निभाने व घडियाली आंसू बहाने में लगा हुआ है। उन्होंने मुझे ज्ञापन की प्रति सौंपते हुए कहा कि अगर आगामी 15 दिनों में हमारी आवाज को सरकार तक न पहुंचाया और जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता तब तक तुम्हें हमारा साथ देना होगा अन्यथा इसके बुरे परिणाम भुगतने होगे। ऐसी धमकी ज्ञापन देकर वे चल दिए।
वास्तव में इंसान इतना स्वार्थी हो गया कि अपने लाभ की खातिर उसने जंगल के जंगल उजाड दिये। अब आप ही बताइए कि आखिर ये पशु पक्षी जाये तो कहां जाये। अतः विकास के नाम पर जंगल काटना बंद कीजिए और पशु पक्षियों को वहां चैन से रहने दीजिए। अन्यथा ये जिस दिन आन्दोलन की राह पर उतर गये तो फिर होने वाले नुक़सान की जिम्मेदारी प्रशासन व सरकार की होगी अभी भी वक्त है कि पशु पक्षियों को उनकी भूमि अतिक्रमण मुक्त कर पुनः लौटाई जाये व जिन्होंने जंगलों पर अपनी इमारते खडी कर रखी है उन्हें गिराई जाये और अतिक्रमियों को दंडित किया जाये।