***
साहित्य लहर

गांव के स्कूल में नामांकन और पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत

1952 : अवध किशोर झा की डायरी

गांव के स्कूल में नामांकन और पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत… कभी दीरा तो कभी टाल जाया करता था। भूसा भी ढोया करता था। मेरे जीवन का कुछ अमूल्य समय गाय पालने के व्यर्थ प्रयास में नष्ट हुआ। किसी तरह मैं चतुर्थ क्लास पास हो गया। मुझे कुछ अनुभव भी हुआ और और दुनिया को समझने लगा। चतुर्थ क्लास पास होने के बाद मैं पांचवें क्लास में पढ़ने लगा।

मेरे जीवन के ये दिन बड़े नीरस थे। मुझे संसार की अन्य बातों से बहुत कम संपर्क रहता था। मैं अपने को बिल्कुल अपूर्ण समझता था। मन में भविष्य के बारे में विविध प्रकार की कल्पनाएं उठा करती थीं और कभी – कभी भविष्य अंधकारमय जान पड़ता था। गांव के अन्य ब्राह्मणों की तुलना में मैं अपने को हीन समझता था। समाज से मैं बिल्कुल अलग था लेकिन श्राद्ध के भोजों में हम ब्राह्मणों के साथ बैठकर खाया करते थे। इन भोजों के अवसरों पर हमें अत्यधिक खुशी होती थी पर पीछे चलकर इन भोजों के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न हुआ और मैं इसमें शामिल होना अपने लिए अपमानजनक समझने लगा।

फिर भी अपने हृदय की कमजोरी के कारण मैं इसे त्याग नहीं सका हूं। इस समय तक मैं देश की बाह्य स्थिति से बिल्कुल अपरिचित था। गांव के लोग हमें हेय दृष्टि से देखते थे और कुछ लोग वैसे भी थे जो कि हमें अनाप शनाप बककर चिढ़ाया करते थे। अपने टोले के लड़कों के सिवा उस समय और किसी दूसरे ग्रामीण व्यक्ति से कोई परिचय नहीं था। ब्राह्मण समाज भी हमें दूसरी ही दृष्टि से देखा करता था। गांव के ब्राह्मणों की दृष्टि मेरे तथा हमारे परिवार के प्रति सहानुभूतिपूर्ण नहीं थी। ब्राह्मण समाज भी हमें दूसरी ही दृष्टि से देखा करता था। गांव के ब्राह्मणों की दृष्टि मेरे तथा हमारे परिवार के प्रति सहानुभूतिपूर्ण अथवा मित्रतापूर्ण नहीं थी बल्कि उनके विचारों में क्रूरता भरी हुई थी और वे हमें दीन हीन समझकर मन ही मन जला करते थे।

समाज के अन्य लोगों से हमें बहुत कम मिलना – जुलना पड़ता था। किसी भी व्यक्ति से कुछ मांगने में हमें घोर लज्जा का अनुभव होता था। अपने साथियों के साथ बगीचों, खेतों आदि में घूमने से हमें किसी तरह का लाभ तो नहीं था लेकिन उसमें एक आनंद का अनुभव होता था और प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन अच्छा लगता था। धर्म के प्रति उस समय काफी रुचि थी और गंगास्नान, व्रत तथा राम- नाम भजन आदि यथाशक्ति किया करते थे। ईश्वर की सत्ता पर पूर्ण विश्वास था तथा आत्मा की अमरता स्वर्ग आदि पर भी विश्वास था। राणिक कहानियों के प्रति भी आसक्ति थी और बहुत सी कहानियां जान भी गया था।

चन्द्र, सूर्य और तारों को मैं देवता समझता था। आकाश में भिन्न – भिन्न रंगों के बादलों को देखकर मन में नाना प्रकार की कल्पनाएं उठा करती थीं और मैं समझता था कि बादलों के अंदर कोई स्थान है जिसे स्वर्ग कहते हैं और जहां मरणोपरांत लोग जाया करते हैं। भूत प्रेत से भी ड्रा करता था और मुर्दे को देखकर घृणा पैदा होती थी। शायद इसी समय हमें एक बहन भी पैदा हुई थी जो दो महीने के बाद मर गयी । पृथ्वी को मैं चिपटी समझता था और मेरे विचार में इसके नीचे कोई दूसरा लोक भी था जहां कि लोग ( मनुष्य) वास किया करते थे। राम – कृष्ण को मैं ऊपर कहीं आकाश में पैठा हुआ समझता था। अपने किए कर्मों पर पूर्ण विश्वास था।

संक्षेप में मैं आस्तिक था। मेरा ज्ञान उस समय बिल्कुल सीमित था हिन्दी बिल्कुल नहीं जानता था। कुछ धार्मिक किस्से कहानियां अवश्य जानता था। ब्राह्मणों के बड़प्पन और यज्ञादि कर्मकांड मेरे विचार से उचित थे। उस समय हमारी नैतिक दशा भी करीब – करीब ठीक ही थी। मूर्ख और उदंड बालकों की संगति से कुछ उच्छृंखलता भी आ गयी थी जिसके फलस्वरूप कुछ बुरे संस्कार भी मन में जमने शुरू हो गये थे। आर्थिक दशा हमारी उतनी अच्छी नहीं थी। जब इंदुपुर स्कूल लोअर प्राइमरी से अपर प्राइमरी हो गया तो अन्य लड़कों की देखा-देखी मैंने भी अपर में पढ़ने का निश्चय किया और चतुर्थ वर्ग में नाम भी लिखवाया।



उस समय मैं हिसाब बहुत कम जानता था और जो कुछ भी जानता था वह भूल गया था। मुझे पढ़ने में कठिनाई अनुभव हुआ। हिसाब के अतिरिक्त अन्य विषयों को कुछ समझता था। लेकिन मैं स्कूल नियमित रूप से नहीं जाता था। उसी समय मैंने एक गाय भी पालना शुरू किया। जिसे चारा पानी खिलाना पिलाना पड़ता था। घर में कोई अन्य काम नहीं था फिर भी मेरा अधिकांश समय आलस में ही व्यतीत होता था। घर में कोई अन्य काम नहीं था फिर भी मेरा अधिकांश समय आलस्य में ही व्यतीत होता था। गर्मी के मौसम में अपने बगीचे में भी जाया करता था। इधर गाय के आ जाने से टाल भी जाने लगा और घास वगैरह काटने लगा।



कभी दीरा तो कभी टाल जाया करता था। भूसा भी ढोया करता था। मेरे जीवन का कुछ अमूल्य समय गाय पालने के व्यर्थ प्रयास में नष्ट हुआ। किसी तरह मैं चतुर्थ क्लास पास हो गया। मुझे कुछ अनुभव भी हुआ और और दुनिया को समझने लगा। चतुर्थ क्लास पास होने के बाद मैं पांचवें क्लास में पढ़ने लगा। यह 1944 ई. की बात है। पांचवें क्लास में सारी किताबें मोल ली गयीं। इसी समय हमारे जीवन में एक घटना घटी जिसका हमारे जीवन में कुछ महत्व है। हमारे बड़े भाई की शादी उस समय नहीं हुई थी लेकिन लड़की के अभिभावक प्रायः आया करते थे। लेकिन हमारे परिवार की सरलता और धन संपन्नता न होने के कारण लौट जाया करते थे।



इसी समय में दरियापुर के एक लड़की वाले आये और उन्होंने मुझे चुहरचक में देखने के लिए बुलाया। वहां जाने से मेरा अपमान हुआ और मैंने अपने को बहुत लज्जित पाया। लेकिन दुख है कि मैं भविष्य में भी इस घटना से शिक्षा नहीं ले सका। पांचवें क्लास में भी मैंने अनियमित रूप से एक साल तक पढ़ाई-लिखाई करता रहा। उस समय तक मुझे हिंदी का कुछ – कुछ ज्ञान हो चला था। मैंने अब तक कोई अन्य किताब नहीं पढ़ी थी। क्लास में गणित को छोड़कर अन्य विषयों को समझता था। गणित मेरे लिए भारस्वरूप पड़ता था।



फिर भी किसी तरह पांचवां क्लास पास हो गया उस समय तक मेरी स्थिति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ था बल्कि अब भी मैं अपने को सफलता से कोसों दूर पाता था। उसी समय मुझे पिलही की असाध्य बीमारी हो गयी थी जो बहुत दिनों के बाद छूटी। वन जंगलों में घूमना, बेर तोड़ना, नदी में उछलना, इमली तोड़ना और उदंड लड़कों के साथ घूमना अब तक जारी था। उसी समय कुछ बुरे लड़कों की भी संगति हुई। अब तक मैं मांस मछली भी खाता था।

कविता : घरौंदा


गांव के स्कूल में नामांकन और पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत... कभी दीरा तो कभी टाल जाया करता था। भूसा भी ढोया करता था। मेरे जीवन का कुछ अमूल्य समय गाय पालने के व्यर्थ प्रयास में नष्ट हुआ। किसी तरह मैं चतुर्थ क्लास पास हो गया। मुझे कुछ अनुभव भी हुआ और और दुनिया को समझने लगा। चतुर्थ क्लास पास होने के बाद मैं पांचवें क्लास में पढ़ने लगा।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights