लघुकथा : विधायक जी का भंडारा
भंडारा संपन्न हो गया, परंतु विधायक जी को टिकट न मिल सका। सब करेधरे पर पानी फिर गया। चटोरानंद मोटा माल मारकर अपने मठ को वापिस लौट गया। और विधायक जी अब पूर्व विधायक बनकर गांव-गांव, गली -गली धूल फांकते फिर रहे हैं, ताकि भविष्य में पुनः उनका भाग्य उदय हो सके।#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, आगरा, उत्तर प्रदेश
भंडारा बहुत बड़ा था। लोग चटकारे ले- लेकर विभिन्न पकवानों का लुफ्त उठा रहे थे। उक्त भंडारे के आयोजक क्षेत्रीय विधायक जी थे। भंडारे में दुनिया भर के साधु- संत, हजारों- हजार लोग भोजन पा रहे थे। साधु संत तो भोजन के साथ-साथ दान- दक्षिणा भी पा रहे थे। इस भंडारे के आयोजन की सलाह विधायक जी के आति सम्मानित गुरु चटोरानंद ने दी थी।
चटोरानंद ने अपने कमाऊ शिष्य (विधायक जी) से कहा-‘ चेला ! अगर तू एक बहुत बड़ा भंडारा करे और साधु-संतों को दान दक्षिणा दे, हवन-पूजन, यज्ञ, कथा भी करे तो तुझे सीट उसी पार्टी से मिलेगी, जिसकी हवा अभी चल रही है। लोग भी तेरा खाकर तुझे वोट करेंगे।
साधु संतों को दान -दक्षिणा देने से तेरे पाप कटेंगे। तूने जो काली कमाई की है, उसमें से अगर कुछ हिस्सा पुण्य कार्यों में खर्च होगा तो तुझे अवश्य पुण्य प्राप्त होगा…।’ विधायक जी अपनी मुंडी (सिर) हिलाते हुए चटोरानंद के चरणों में लोटपोट हो गये।
भंडारा संपन्न हो गया, परंतु विधायक जी को टिकट न मिल सका। सब करेधरे पर पानी फिर गया। चटोरानंद मोटा माल मारकर अपने मठ को वापिस लौट गया। और विधायक जी अब पूर्व विधायक बनकर गांव-गांव, गली -गली धूल फांकते फिर रहे हैं, ताकि भविष्य में पुनः उनका भाग्य उदय हो सके।