चिंतन : पढ़ने की संस्कृति, बढ़ने की संस्कृति
चिंतन : पढ़ने की संस्कृति, बढ़ने की संस्कृति… पुस्तकालयों की स्थापना और उनमें लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना, स्कूलों में पढ़ने की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर शिक्षाप्रद सामग्री का वितरण करना कुछ ऐसे कदम हैं जो समाज में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं। #अंकित तिवारी
शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति का आधार होती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि उसके नागरिकों की ज्ञान, समझ और नैतिक मूल्यों पर निर्भर करती है। ऐसे में पढ़ने की संस्कृति का विकास करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है क्योंकि यह केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि समग्र समाज और राष्ट्र की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है।
पढ़ने की संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है, जो ज्ञान के विस्तार और बौद्धिकता के विकास की नींव रखती है। जब समाज में पढ़ने की आदत प्रचलित होती है, तो लोग अपने आसपास की दुनिया को बेहतर समझने लगते हैं, सोचने की क्षमता का विकास होता है और समस्याओं का समाधान खोजने की शक्ति बढ़ती है। आज के समय में तेजी से बदलती दुनिया में व्यक्ति को हर रोज नए ज्ञान की आवश्यकता होती है। इंटरनेट और डिजिटल युग में जानकारी तो बहुतायत में उपलब्ध है, लेकिन इसे सही तरीके से समझने और आत्मसात करने के लिए पढ़ने की आदत का होना जरूरी है।
जिस समाज में पढ़ने की संस्कृति हो, वहीं पर बढ़ने की संस्कृति भी फल-फूल सकती है। पढ़ाई का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना या नौकरी प्राप्त करना नहीं होना चाहिए। इसका वास्तविक उद्देश्य व्यक्ति को मानसिक, सामाजिक और नैतिक रूप से मजबूत बनाना है। जब व्यक्ति नई जानकारी और विचारों को आत्मसात करता है, तो उसकी सोच व्यापक होती है। वह अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकता है और समाज में सकारात्मक योगदान दे सकता है। पढ़ने की आदत व्यक्ति में अनुशासन, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और निरंतर सीखने की प्रवृत्ति को विकसित करती है, जो उसके जीवन को संवारने में सहायक सिद्ध होती है।
आज की तेज गति से चलने वाली जिंदगी और तकनीकी युग में पढ़ने की संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा है। सोशल मीडिया, टीवी और अन्य डिजिटल माध्यमों ने युवा पीढ़ी का ध्यान किताबों से हटाकर स्क्रीन की ओर कर दिया है। गहराई से अध्ययन करने की प्रवृत्ति कम हो रही है, और सतही जानकारी पर निर्भरता बढ़ रही है। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि बिना गहराई के अध्ययन के सही निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
हमें अपनी आने वाली पीढ़ी में पढ़ने की संस्कृति को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि पढ़ाई केवल स्कूल और कॉलेज तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यह जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है, जो व्यक्ति को हर दिन कुछ नया सिखाती है। इसके लिए घर, स्कूल, और समाज के सभी स्तरों पर पढ़ने के प्रति रुचि और आदत को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पुस्तकालयों की स्थापना और उनमें लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना, स्कूलों में पढ़ने की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर शिक्षाप्रद सामग्री का वितरण करना कुछ ऐसे कदम हैं जो समाज में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं।
पढ़ने की संस्कृति का विकास एक सतत प्रक्रिया है जो व्यक्ति के बौद्धिक और नैतिक विकास का आधार होती है। जब पढ़ने की संस्कृति मजबूत होती है, तब बढ़ने की संस्कृति का भी विकास होता है। एक समाज, जो पढ़ने और सीखने को महत्व देता है, वह न केवल खुद का बल्कि पूरी दुनिया का मार्गदर्शन कर सकता है। अतः आज के युग में पढ़ने की संस्कृति को पुनर्जीवित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि हम एक प्रबुद्ध और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकें।
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(इस लेख के लेखक अंकित तिवारी शोधार्थी, पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि एवं अधिवक्ता हैं)